Class 10th Biology Chapter 2 Notes in Hindi – नियंत्रण और समन्वय (Control and Coordination) के इस पोस्ट में हम आपको पूरी तरह से NCERT syllabus पर आधारित, सरल और स्पष्ट भाषा में तैयार नियंत्रण और समन्वय टॉपिक के सम्पूर्ण नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं।
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Class 10th Biology Chapter 2 Notes in Hindi
नियंत्रण और समन्वय (Control and Coordination in Living Organisms)
➤ सभी जीवों के शरीर में पाए जाने वाले अंग और अंगतंत्र मिलकर जैव क्रियाओं को सफलतापूर्वक संचालित करते हैं। इस संचालन के लिए उनके बीच उचित नियंत्रण और समन्वय का होना अत्यंत आवश्यक है। यह नियंत्रण उन्हें वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया देने में मदद करता है, जिससे जीवित रहने की प्रक्रिया सहज होती है।
एककोशकीय और बहुकोशकीय जीवों में नियंत्रण और समन्वय
➤ वे जीव जिनका शरीर केवल एक कोशिका से बना होता है, जैसे अमीबा, क्लेमाइडोमोनास आदि, उनकी सभी जैव क्रियाएँ उसी एक कोशिका द्वारा नियंत्रित और संचालित की जाती हैं। जबकि बहुकोशकीय जीवों में विभिन्न कार्यों के लिए विशेष अंग और अंगतंत्र विकसित होते हैं, जो आपस में समन्वय बनाकर कार्य करते हैं। यह समन्वय उन्हें अधिक जटिल कार्य करने में सक्षम बनाता है।
वनस्पति और जंतु नियंत्रण में अंतर
➤ पौधों और जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय की प्रणाली में स्पष्ट अंतर होता है। जंतु तंत्रिका तंत्र (nervous system) और हार्मोन दोनों का उपयोग करते हैं, जबकि पौधों में केवल रासायनिक नियंत्रण होता है। इसलिए पौधों में किसी तंत्रिका तंत्र की उपस्थिति नहीं पाई जाती।
पौधों में नियंत्रण और समन्वय की प्रक्रिया
➤ पौधों में नियंत्रण और समन्वय का कार्य पादप हार्मोन (Phytohormones) द्वारा किया जाता है। ये हार्मोन बाह्य उद्दीपन (external stimuli) को ग्रहण कर, पौधे के अंगों में उपयुक्त प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। इस प्रक्रिया में पौधों की गतियाँ शामिल होती हैं, जिन्हें अनुवर्तिनी गति (Tropic Movements) कहा जाता है। ऐसी गतियाँ मुख्यतः चार प्रकार की होती हैं:
(i) प्रकाश अनुवर्तन (Phototropism)
➤ इस प्रक्रिया में पौधे का कोई भाग, जैसे तना, प्रकाश स्रोत की ओर बढ़ता है। यह गति पौधे के शीर्ष भाग में अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यह प्रतिक्रिया ऑक्सिन नामक हार्मोन की मदद से होती है।
(ii) गुरुत्व अनुवर्तन (Geotropism)
➤ इस प्रकार की गति में पौधे के भाग गुरुत्वाकर्षण की दिशा में वृद्धि करते हैं। उदाहरण के लिए, जड़ें हमेशा नीचे की ओर बढ़ती हैं, जो नकारात्मक प्रकाश अनुवर्तन और सकारात्मक गुरुत्व अनुवर्तन का परिचायक है।
(iii) रासायनिक अनुवर्तन (Chemotropism)
➤ यह गति रासायनिक उद्दीपनों के प्रति होती है। परागण की प्रक्रिया के दौरान, परागनलिका का बीजांड की ओर बढ़ना इस प्रकार की अनुवर्तिनी गति को दर्शाता है।
(iv) जल अनुवर्तन (Hydrotropism)
➤ जब पौधे का कोई अंग जल स्रोत की ओर बढ़ता है तो उस गति को जल अनुवर्तन कहते हैं। यह विशेष रूप से जड़ों में देखा जाता है, जो नमी की दिशा में बढ़ती हैं।
पौधों में रासायनिक समन्वय की भूमिका
➤ पादप हार्मोन, जिन्हें फाइटोहार्मोन भी कहा जाता है, पौधों में जैव क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हार्मोन पौधों के विभिन्न अंगों में जाकर उनकी वृद्धि, कोशिका विभाजन, पुष्पन, फलन आदि को नियंत्रित करते हैं।
➤ इसके अलावा, कुछ बाहरी स्रोतों से प्राप्त कार्बनिक यौगिक भी पादप हार्मोन के समान कार्य करते हैं, जिन्हें ग्रोथ रेगुलेटर (Growth Regulators) कहा जाता है। ये यौगिक कृषिकार्यों में विशेष रूप से उपयोगी होते हैं, जैसे कि अधिक उत्पादन, बीज अंकुरण, और पुष्पन को नियंत्रित करना।
पौधों के हार्मोन और उनके प्रकार
पौधों में जैविक गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले रासायनिक पदार्थों को पादप हार्मोन या पौधों के विकास नियामक कहा जाता है। इनके रासायनिक संघटन और कार्य प्रणाली के आधार पर इन्हें पाँच प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है:
- ऑक्जिन (Auxin)
- जिबरेलिन्स (Gibberellins)
- साइटोकाइनिन (Cytokinin)
- ऐबसिसिक एसिड (Abscisic Acid)
- एथिलीन (Ethylene)
1. ऑक्जिन (Auxin) — पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करने वाला हार्मोन
ऑक्जिन एक प्रमुख पादप हार्मोन है जो मुख्यतः पौधों के शिखर बिंदु (apical meristem) में बनता है। यह हार्मोन पौधों में कोशिका विभाजन तथा कोशिका लम्बाई में वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।
🔹 यह विशेष रूप से तने की लम्बाई बढ़ाने में सहायक होता है।
🔹 बीजरहित (Seedless) फलों के विकास में ऑक्जिन अहम भूमिका निभाता है।
🔹 पौधों की फोटोट्रॉपिक (प्रकाश की दिशा में झुकाव) और ग्रेविट्रॉपिक (गुरुत्वाकर्षण की दिशा में प्रतिक्रिया) क्रियाओं में भी इसका योगदान होता है।
2. जिबरेलिन्स (Gibberellins) — पौधों की ऊँचाई और फूलों के विकास में सहायक
जिबरेलिन्स श्रेणी का प्रमुख हार्मोन जिबरेलिक एसिड है, जो एक जटिल कार्बनिक यौगिक होता है। यह हार्मोन मुख्य रूप से कोशिका विभाजन और कोशिका वृद्धि को प्रोत्साहित करता है, जिससे पौधों के तनों की लंबाई बढ़ती है।
🔹 यह ऊँचे और लंबे पौधों के विकास में सहायता करता है।
🔹 इसके प्रयोग से बड़े आकार के फूल और फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
🔹 यह बीज के अंकुरण (germination) में भी सहायक होता है, खासकर जब बीज सुप्तावस्था में हों।
3. साइटोकाइनिन (Cytokinin) — कोशिका विभाजन और पत्तियों की ताजगी बनाए रखने वाला हार्मोन
साइटोकाइनिन ऐसे रासायनिक यौगिक हैं जो मुख्यतः जड़ प्रणाली और बीज के भ्रूणपोष (endosperm) में पाए जाते हैं। यह हार्मोन पौधों में कोशिका विभाजन को उत्तेजित करता है और ऊतकों की मरम्मत में भी मदद करता है।
🔹 साइटोकाइनिन पत्तियों को लंबे समय तक हरा और ताजा बनाए रखने में सहायक होता है।
🔹 यह पत्तियों की जीर्णता (senescence) को धीमा करता है।
🔹 यह अन्य हार्मोनों के साथ मिलकर शाखाओं की वृद्धि को भी प्रभावित करता है।
4. ऐबसिसिक एसिड (Abscisic Acid) — वृद्धि को रोकने और पत्तियों के झड़ने में भूमिका निभाने वाला हार्मोन
ऐबसिसिक एसिड, जिसे सामान्यतः विकास अवरोधक हार्मोन कहा जाता है, पौधों की वृद्धि को नियंत्रित एवं रोकने का कार्य करता है। यह हार्मोन ऑक्जिन और जिबरेलिन्स की गतिविधियों के विपरीत कार्य करता है।
🔹 यह पौधों को तनावपूर्ण परिस्थितियों, जैसे सूखा या अत्यधिक गर्मी में जीवित रहने में मदद करता है।
🔹 इसे पौधे पर छिड़कने से पत्तियाँ शीघ्र झड़ने लगती हैं, इसलिए यह पर्णपात को प्रेरित करता है।
🔹 यह बीजों को सुप्तावस्था में रखने में भी योगदान करता है।
5. एथिलीन (Ethylene) — फल पकाने वाला प्राकृतिक हार्मोन
एथिलीन एकमात्र ऐसा पादप हार्मोन है जो गैस के रूप में कार्य करता है। यह हार्मोन विशेषकर उन पौधों में पाया जाता है जो प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना कर रहे होते हैं।
🔹 एथिलीन का सबसे प्रमुख कार्य फलों को पकाना होता है, इसलिए इसे फल पकाने वाला हार्मोन भी कहा जाता है।
🔹 यह पत्तियों, फूलों और फलों के गिरने की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करता है।
🔹 इसका उपयोग कृत्रिम रूप से फलों को पकाने के लिए भी किया जाता है, जैसे – आम, केले आदि।
जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय
जंतुओं में शरीर की विभिन्न शारीरिक क्रियाओं, जैसे गति, प्रतिक्रिया, भूख, प्यास, आदि के बीच उचित तालमेल बनाए रखना आवश्यक होता है। इस तालमेल और दिशा-निर्देशन की प्रक्रिया को नियंत्रण एवं समन्वय (Control and Coordination) कहा जाता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से दो माध्यमों से होती है:
- तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous Control and Coordination)
- रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination)
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous Control and Coordination)
यह समन्वय शरीर में उपस्थित तंत्रिकाओं के माध्यम से होता है। उन्नत जंतुओं में कई तंत्रिकाएं मिलकर एक जटिल प्रणाली बनाती हैं, जिसे तंत्रिका तंत्र (Nervous System) कहा जाता है। यह तंत्र शरीर के विभिन्न भागों में संवेदनाओं को ले जाने, उनका विश्लेषण करने और आवश्यक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करने का कार्य करता है।
तंत्रिका तंत्र, संवेदी और प्रेरक दोनों प्रकार की सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। यह जंतुओं को उनके पर्यावरण के अनुरूप प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है, जिससे वे बदलती परिस्थितियों में अनुकूल रह सकें।
तंत्रिकीय ऊतक और न्यूरॉन
जंतुओं के शरीर में एक विशेष प्रकार का ऊतक पाया जाता है जिसे तंत्रिकीय ऊतक (Nervous Tissue) कहा जाता है। यह ऊतक न्यूरॉन (Neuron) नामक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। न्यूरॉन तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है।
हर न्यूरॉन में एक प्रमुख कोशिकीय भाग होता है, जिसे साइटन (Cyton) या कोशिका शरीर कहा जाता है। इसमें कोशिकाद्रव्य तथा एक बड़ा न्यूक्लियस (Nucleus) उपस्थित होता है। साइटन से अनेक तंतु निकलते हैं, जिनमें सबसे लंबा एक्सॉन (Axon) कहलाता है, जबकि छोटे और शाखित तंतु डेंड्राइट्स (Dendrites) कहलाते हैं।
न्यूरॉन की कार्यप्रणाली
डेंड्राइट्स शरीर के विभिन्न संवेदी अंगों जैसे त्वचा, नाक, कान, जीभ आदि से संवेदनाओं को ग्रहण करते हैं और उन्हें साइटन तक पहुंचाते हैं। साइटन इन संवेदनाओं को विद्युत आवेग (Electrical Impulse) में बदल देता है। इसके बाद यह आवेग एक्सॉन द्वारा अन्य न्यूरॉनों या प्रभावक अंगों (जैसे मांसपेशियों) तक पहुँचता है, जिससे उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।
यह संपूर्ण प्रक्रिया बहुत ही तेज होती है, जिससे जंतु किसी भी बाहरी उद्दीपन (stimulus) पर शीघ्र प्रतिक्रिया दे पाते हैं।
तंत्रिका तंत्र के अंग और उनकी भूमिका
उच्च श्रेणी के जंतुओं में तंत्रिका तंत्र का गठन तीन प्रमुख भागों से होता है:
- मस्तिष्क (Brain): यह तंत्रिका तंत्र का प्रमुख नियंत्रण केंद्र होता है, जो सभी सूचनाओं का विश्लेषण करता है और प्रतिक्रिया निर्धारित करता है।
- मेरुरज्जु (Spinal Cord): यह मस्तिष्क से पूरे शरीर में तंत्रिकाओं के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान करता है।
- तंत्रिकाएं (Nerves): ये संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती हैं, चाहे वे संवेदी सूचना हो या मांसपेशियों को क्रिया हेतु निर्देश।
मनुष्य का मस्तिष्क
मनुष्य का मस्तिष्क शरीर का सबसे जटिल और अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह तंत्रिका तंत्र का केंद्रीय नियंत्रण केंद्र है जो शरीर की सभी स्वैच्छिक और अनैच्छिक क्रियाओं का समन्वय करता है। हमारी सोचने, समझने, निर्णय लेने और भावनाओं को अनुभव करने की क्षमता मस्तिष्क के कारण ही संभव है।
मस्तिष्क की संरचना और सुरक्षा
मस्तिष्क हमारे सिर की खोपड़ी (Skull) में स्थित होता है, जिसे मस्तिष्कगुहा (Brain Box) भी कहा जाता है। यह एक नाजुक और कोमल अंग है, जिसे बाहरी आघातों से सुरक्षित रखने के लिए चारों ओर एक तंतुमय संयोजी ऊतक की झिल्ली से घेरा गया होता है, जिसे मेनिंजिज (Meninges) कहते हैं।
मेनिंजिज और मस्तिष्क के बीच में एक तरल पदार्थ पाया जाता है जिसे सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूइड (Cerebrospinal Fluid) कहते हैं। यह तरल मस्तिष्क को झटकों और दबाव से बचाने में मदद करता है, साथ ही इसे नम बनाए रखता है।
मस्तिष्क का औसत आयतन लगभग 1650 मि.ली. तथा भार लगभग 1.5 किलोग्राम होता है।
मस्तिष्क के प्रमुख भाग
मनुष्य का मस्तिष्क तीन मुख्य भागों में विभाजित होता है:
- अग्रमस्तिष्क (Forebrain)
- मध्यमस्तिष्क (Midbrain)
- पश्चमस्तिष्क (Hindbrain)
1. अग्र मस्तिष्क (Forebrain)
यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा और अत्यंत विकसित भाग होता है। अग्र मस्तिष्क दो प्रमुख भागों में विभाजित होता है:
(i) सेरीब्रम (Cerebrum)
- यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है और मस्तिष्क के ऊपरी, पार्श्व तथा पिछली सतह को ढंकता है।
- यह मनुष्य की बुद्धि, स्मरण शक्ति, निर्णय क्षमता, और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का केंद्र होता है।
- सोचने-समझने, सीखने, प्रेरणा, घृणा, प्रेम, भय, हर्ष, दुःख आदि क्रियाओं का नियंत्रण सेरीब्रम द्वारा किया जाता है।
(ii) डाइएनसेफ्लोन (Diencephalon)
- यह तापमान की अनुभूति, दर्द, और कुछ भावनात्मक प्रतिक्रियाओं जैसे रोना आदि का नियंत्रण करता है।
- शरीर की आंतरिक स्थितियों को बनाए रखने में यह भाग सहयोग करता है।
2. मध्यमस्तिष्क (Midbrain)
- यह मस्तिष्क स्टेम का ऊपरी भाग होता है और सेरीब्रम तथा पश्चमस्तिष्क के बीच स्थित होता है।
- यह आंखों की मांसपेशियों और शरीर के संतुलन को नियंत्रित करता है।
- दृश्य और श्रवण उद्दीपनों पर प्रतिक्रिया देने में यह भाग सहायक होता है।
3. पश्चमस्तिष्क (Hindbrain)
पश्चमस्तिष्क दो भागों में विभाजित होता है:
(i) सेरिबेलम (Cerebellum)
- यह भाग शारीरिक संतुलन, मांसपेशियों की गति और समन्वय को नियंत्रित करता है।
- यदि सेरिबेलम को क्षति पहुंचाई जाए, तो शरीर की ऐच्छिक गतियाँ जैसे चलना, बोलना, हाथों का संचालन आदि असामान्य हो जाती हैं।
- उदाहरण के लिए, व्यक्ति ठीक से नहीं चल सकता, वस्तुओं को पकड़ने में कठिनाई होगी, या बोलने में समस्या आ सकती है।
(ii) मस्तिष्क स्टेम (Brain Stem)
मस्तिष्क स्टेम के अंतर्गत दो मुख्य भाग आते हैं:
- (क) पोन्स वैरोलाई (Pons Varolii): यह श्वसन की गति को नियंत्रित करता है और मस्तिष्क के अन्य भागों के बीच संपर्क बनाए रखता है।
- (ख) मेडुला ओब्लांगेटा (Medulla Oblongata): यह उन अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण केंद्र है जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं।
मेडुला ओब्लांगेटा निम्नलिखित कार्यों को नियंत्रित करता है:
- हृदय की धड़कन (Heartbeat)
- रक्तचाप (Blood Pressure)
- श्वसन की दर (Rate of Respiration)
- खाँसना, छींकना, उल्टी करना, और पाचक रसों का स्राव आदि
मस्तिष्क के कार्य
मनुष्य का मस्तिष्क शरीर की सभी स्वैच्छिक और अनैच्छिक क्रियाओं का नियंता है। यह केवल सूचनाओं को ग्रहण ही नहीं करता, बल्कि उनका विश्लेषण, समन्वय और उपयुक्त प्रतिक्रिया देने का कार्य भी करता है। मस्तिष्क के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) आवेगों का ग्रहण (Receiving Impulses)
मस्तिष्क हमारे शरीर के विभिन्न संवेदी अंगों जैसे त्वचा, आंख, कान, जीभ और नाक से प्राप्त आवेगों को ग्रहण करता है। ये आवेग किसी बाहरी उद्दीपन के कारण उत्पन्न होते हैं और संवेदी तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।
(ii) आवेगों की अनुक्रिया (Responding to the Impulses Received)
जब मस्तिष्क तक कोई संवेदना या आवेग पहुँचता है, तो वह उसका विश्लेषण करता है और फिर शरीर के संबंधित अंगों को प्रतिक्रिया देने के लिए निर्देश भेजता है। यह प्रक्रिया तंत्रिका तंत्र के माध्यम से बहुत तेजी से होती है, जिससे शरीर समय पर उचित प्रतिक्रिया दे पाता है।
(iii) विभिन्न आवेगों का सहंसंबंध (Co-relating Various Impulses)
मस्तिष्क को एक साथ अनेक संवेदी अंगों से कई प्रकार के आवेग प्राप्त होते हैं। यह इन सभी सूचनाओं को एक-दूसरे से जोड़कर और उनका सहसंयोजन कर शरीर की क्रियाओं में संतुलन बनाए रखता है। इसी के कारण हम कई काम एक साथ कुशलतापूर्वक कर पाते हैं।
(iv) सूचना का भंडारण (Storage of Information)
मस्तिष्क में प्राप्त सूचनाएं चेतना और स्मृति के रूप में संचित रहती हैं। यह संचित ज्ञान भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में लाया जा सकता है। इसलिए मस्तिष्क को ज्ञान और अनुभव का भंडार भी कहा जाता है।
प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arc)
कई बार शरीर किसी उद्दीपन पर स्वतः ही और बहुत तेजी से प्रतिक्रिया करता है, जिसे प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action) कहते हैं। यह क्रिया मस्तिष्क की बजाय मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित की जाती है और इसमें न्यूरॉन एक विशेष पथ पर कार्य करते हैं जिसे प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arc) कहा जाता है।
प्रतिवर्ती चाप के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:
(i) ग्राही अंग (Receptor)
ये अंग त्वचा, मांसपेशियों या अन्य अंगों में पाए जाते हैं। ये किसी भी प्रकार के उद्दीपन, जैसे गर्मी, दबाव, चोट आदि को पहचानते हैं और संवेदी न्यूरॉन को संकेत भेजते हैं।
(ii) संवेदना मार्ग (Sensory Path)
ग्राही अंगों द्वारा प्राप्त उद्दीपन की सूचना संवेदी न्यूरॉन के माध्यम से तंत्रिका केंद्र तक पहुंचाई जाती है। यह मार्ग आवेग को मस्तिष्क या मेरुरज्जु तक पहुंचाने का कार्य करता है।
(iii) तंत्रिका केंद्र (Nerve Center)
यह केंद्र मेरुरज्जु या मस्तिष्क में स्थित होता है। यह सूचना का विश्लेषण करता है और प्रतिक्रिया हेतु उचित आदेश तैयार करता है।
(iv) प्रेरक मार्ग (Motor Path)
तंत्रिका केंद्र द्वारा तैयार किया गया आदेश प्रेरक न्यूरॉन (Motor Neuron) के माध्यम से शरीर के उत्तरदायी अंगों तक पहुंचता है।
(v) अभिवाही अंग (Effector)
ये मांसपेशियाँ या ग्रंथियाँ होती हैं जो प्रेरक न्यूरॉन द्वारा मिले आदेश के अनुसार कार्य करती हैं जैसे – हटना, मांसपेशियों का संकुचन, आदि।
रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination)
शरीर में कुछ क्रियाएं केवल तंत्रिकीय प्रणाली से नहीं, बल्कि रासायनिक पदार्थों द्वारा नियंत्रित होती हैं। इन रासायनिक दूतों को हार्मोन (Hormones) कहा जाता है।
हार्मोन क्या हैं?
हार्मोन विशेष प्रकार के कार्बनिक रसायन होते हैं जो शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों (Endocrine Glands) द्वारा स्रावित होते हैं। ये ग्रंथियाँ रक्त प्रवाह के माध्यम से हार्मोन को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं। इस पूरे नियंत्रण तंत्र को अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System) कहा जाता है।
हार्मोन के कार्य
- हार्मोन शरीर में विशिष्ट क्रियाओं को नियंत्रित करने और शुरू करने का कार्य करते हैं, इसलिए इन्हें प्रेरक रसायन भी कहा जाता है।
- तंत्रिकीय नियंत्रण की तुलना में हार्मोन का प्रभाव अपेक्षाकृत धीरे शुरू होता है, लेकिन इसका असर लंबे समय तक बना रहता है।
- मनुष्य के शरीर में विकास, प्रजनन, चयापचय, मूड, ऊर्जा स्तर जैसी अनेक शारीरिक क्रियाएं हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती हैं।
मनुष्य का अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System in Humans)
मनुष्य के शरीर में कुछ विशेष ग्रंथियाँ होती हैं जो सीधे रक्त में रासायनिक पदार्थों (हॉर्मोन) का स्राव करती हैं। ये ग्रंथियाँ नलिकाहीन ग्रंथियाँ (Ductless Glands) कहलाती हैं और इनका समुच्चय अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System) के रूप में जाना जाता है। ये ग्रंथियाँ शरीर की वृद्धि, विकास, चयापचय, प्रजनन और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में सहायक होती हैं।
मनुष्य में पाई जाने वाली प्रमुख अंतःस्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं:
- पिट्यूटरी ग्रंथि (Pituitary Gland)
- थाइरॉइड ग्रंथि (Thyroid Gland)
- पाराथाइरॉइड ग्रंथि (Parathyroid Gland)
- एड्रिनल ग्रंथि (Adrenal Gland)
- लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans – Pancreas का हिस्सा)
- जनन ग्रंथियाँ (Gonads – अंडाशय और वृषण)
1. पिट्यूटरी ग्रंथि (Pituitary Gland)
पिट्यूटरी ग्रंथि को “मास्टर ग्रंथि” भी कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य कई अंतःस्रावी ग्रंथियों के कार्य को नियंत्रित करती है। यह मस्तिष्क के आधार पर स्थित होती है और कपाल की स्फेनॉइड हड्डी में एक विशेष गड्ढे (Sella turcica) में सुरक्षित रहती है।
इस ग्रंथि के दो मुख्य भाग होते हैं:
- अग्र पिंडक (Anterior Lobe)
- पश्च पिंडक (Posterior Lobe)
अग्र पिंडक (Anterior Pituitary) के कार्य:
- यह वृद्धि हार्मोन (Growth Hormone) का स्राव करता है जो शरीर की हड्डियों और मांसपेशियों की वृद्धि को नियंत्रित करता है।
- यदि यह हार्मोन अत्यधिक मात्रा में बने, तो व्यक्ति असाधारण रूप से लंबा हो जाता है, जिसे जाइगैंटिज्म (Gigantism) कहते हैं।
- यदि यह हार्मोन कम मात्रा में बने, तो शरीर की सामान्य वृद्धि रुक जाती है और व्यक्ति बौना (Dwarf) रह जाता है।
- यह हार्मोन शुक्राणु (Sperm) तथा अंडाणु (Ovum) के निर्माण को भी नियंत्रित करता है।
- एक अन्य हार्मोन स्तन ग्रंथियों को दुग्ध स्त्राव के लिए सक्रिय करता है, जो शिशु के जन्म के बाद उपयोगी होता है।
पश्च पिंडक (Posterior Pituitary) के कार्य:
- यह भाग एक ऐसा हार्मोन स्रावित करता है जो शरीर में जल संतुलन बनाए रखता है।
- एक अन्य हार्मोन प्रसव प्रक्रिया में सहायक होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशियों को संकुचित करता है।
2. थाइरॉइड ग्रंथि (Thyroid Gland)
थाइरॉइड ग्रंथि गर्दन के सामने भाग में श्वासनली (Trachea) के दोनों ओर स्थित होती है। यह एक द्विपिंडीय (bilobed) ग्रंथि होती है और इसका आकार तितली जैसा होता है।
- इस ग्रंथि से थाइरॉक्सिन (Thyroxine) नामक हार्मोन स्रावित होता है, जो शरीर के चयापचय दर (Metabolic Rate) को नियंत्रित करता है।
- थाइरॉक्सिन के निर्माण के लिए आयोडीन आवश्यक होता है। यदि आहार में आयोडीन की कमी हो जाए, तो थाइरॉक्सिन का निर्माण कम हो जाता है।
- ऐसे में थाइरॉइड ग्रंथि थाइरॉक्सिन के निर्माण को बढ़ाने के लिए आकार में बढ़ जाती है, जिससे गर्दन के पास सूजन हो जाती है। इस स्थिति को घेंघा (Goitre) कहा जाता है।
3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि (Parathyroid Gland)
यह ग्रंथि थाइरॉइड ग्रंथि के पीछे चार छोटी-छोटी ग्रंथियों के रूप में स्थित होती है।
- इस ग्रंथि से पैराथार्मोन (Parathormone) नामक हार्मोन स्रावित होता है।
- यह हार्मोन रक्त में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है।
- यह हड्डियों से कैल्शियम को रक्त में मुक्त करता है और कैल्शियम के संतुलन को बनाए रखता है, जो मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों के लिए आवश्यक है।
4. एड्रिनल ग्रंथि (Adrenal Gland)
इस ग्रंथि को “सुप्रारेनल ग्रंथि” भी कहा जाता है क्योंकि यह वृक्कों (Kidneys) के ऊपर स्थित होती है।
प्रत्येक एड्रिनल ग्रंथि दो भागों में विभाजित होती है:
A. बाह्य भाग: कॉर्टेक्स (Cortex)
B. भीतरी भाग: मेडुला (Medulla)
A. एड्रिनल कॉर्टेक्स द्वारा स्रावित मुख्य हार्मोन:
- ग्लुकोकोर्टिकोइड्स (Glucocorticoids)
- ये हार्मोन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के उपापचय (Metabolism) को नियंत्रित करते हैं।
- यह जल संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होते हैं।
- मिनरलोकोर्टिकोइड्स (Mineralocorticoids)
- यह हार्मोन वृक्क नलिकाओं (Kidney Tubules) में लवणों के पुनः अवशोषण और जल-संतुलन को नियंत्रित करता है।
- यह शरीर में सोडियम और पोटेशियम के स्तर को भी संतुलित रखता है।
- यौन हार्मोन (Sex Hormones)
- ये हार्मोन हड्डियों और मांसपेशियों के विकास, बाह्य जननांगों के निर्माण, तथा यौन व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
- ये लक्षण पुरुषों और महिलाओं में यौवनावस्था के दौरान स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं।
B. एड्रिनल मेडुला द्वारा स्रावित हार्मोन:
- एपिनेफ्रीन (Epinephrine) – जिसे एड्रेनालिन भी कहते हैं:
- यह तनाव, डर, क्रोध या उत्तेजना की स्थिति में स्रावित होता है।
- यह हृदय गति को तेज, सांस लेने की गति को बढ़ाने और ऊर्जा स्तर बढ़ाने का कार्य करता है।
- इसे “आपातकालीन हार्मोन (Emergency Hormone)” भी कहा जाता है।
- नॉरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine)
- यह भी तनाव की स्थिति में सक्रिय होता है और हृदय पेशियों को उत्तेजित कर उनका संकुचन बढ़ाता है।
- यह रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
5. लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans)
ये अग्न्याशय (Pancreas) का एक अंतःस्रावी भाग हैं।
- इस भाग से इंसुलिन (Insulin) नामक हार्मोन स्रावित होता है।
- इंसुलिन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता है।
- यदि इंसुलिन का स्राव कम हो जाए, तो व्यक्ति को मधुमेह (Diabetes) रोग हो सकता है।
- यह हार्मोन ग्लूकोज को कोशिकाओं में प्रवेश दिलाकर ऊर्जा निर्माण में मदद करता है।
6. जनन ग्रंथियाँ (Gonads)
जनन ग्रंथियाँ प्रजनन से संबंधित हार्मोन और जनन कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। यह स्त्री और पुरुष दोनों में अलग-अलग होती हैं।
(i) अंडाशय (Ovary) – महिलाओं में:
- अंडाशय से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन स्रावित होते हैं।
- ये हार्मोन यौवनावस्था में शारीरिक परिवर्तन, मासिक धर्म चक्र, और गर्भावस्था की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
(ii) वृषण (Testes) – पुरुषों में:
- वृषण से एंड्रोजेन्स (Androgens) हार्मोन, मुख्यतः टेस्टोस्टेरोन स्रावित होता है।
- यह हार्मोन पुरुषों में यौवन लक्षणों का विकास, आवाज़ का भारी होना, मांसपेशियों की वृद्धि, और यौन व्यवहार को नियंत्रित करता है।
निष्कर्ष:
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