Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi | जनन (Reproduction) Free PDF Download

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इसमें जनन की परिभाषा, जनन के प्रकार (लैंगिक और अलैंगिक), जनन की विभिन्न विधियाँ जैसे खंडन, मुकुलन, विखंडन, स्पोर गठन, निषेचन, युग्मनज का निर्माण, पुरुष एवं स्त्री जनन तंत्र की संरचना और कार्य, तथा जनसंख्या नियंत्रण जैसे सभी विषयों को विस्तार से समझाया गया है। साथ ही, इसमें पाठ्यपुस्तक के अनुसार चित्रों और चार्ट्स की मदद से विषय को और भी स्पष्ट किया गया है।

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Table of Contents

जनन (Reproduction)

जनन वह प्रक्रिया कहलाती है, जिसके माध्यम से जीव अपने जैसा नया जीव उत्पन्न करते हैं।
➤ जनन सभी जीवों की एक विशेष विशेषता होती है, जिसके द्वारा जीवों की संख्या में वृद्धि होती है।
➤ किसी भी जीव की जाति के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनन आवश्यक होता है।
➤ इसी प्रक्रिया के द्वारा जीव अपनी नस्ल या जाति को अगली पीढ़ियों तक बनाए रखते हैं।
➤ जनन के समय डीएनए की प्रतिकृति तथा अन्य कोशिकीय संगठन का निर्माण भी होता है।

जनन के प्रकार (Types of Reproduction)

जीवों में जनन मुख्यतः दो प्रकार से होता है –

  1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
  2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)

Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi

अलैंगिक जनन वह प्रक्रिया होती है जिसमें संतान उत्पन्न करने के लिए केवल एक ही जीव की आवश्यकता होती है।
➤ इसमें नर और मादा युग्मकों (शुक्राणु और अंडाणु) की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
➤ इस जनन में उत्पन्न संतानें अनुवांशिक दृष्टि से अपने जनक के समान होती हैं।
➤ इस प्रकार का जनन मुख्यतः निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है –

  1. विखंडन (Fission)
  2. मुकुलन (Budding)
  3. पुनर्जनन (Regeneration)
  4. बीजाणुजनन (Spore Formation)

विखंडन (Fission)

विखंडन एक ऐसी विधि है जिसमें एक जीव दो या अधिक हिस्सों में विभाजित होकर नए जीवों का निर्माण करता है।
➤ यह विधि मुख्य रूप से एककोशिकीय (single-celled) जीवों में पाई जाती है जैसे – अमीबा, जीवाणु, पैरामिशियम, युग्लिना आदि।
➤ इस विधि से उत्पन्न संतति को अनुजात (Clone) कहा जाता है।
➤ विखंडन दो प्रकार का होता है –

(i) द्विखंडन (Binary Fission) –
जब एक जीव दो बराबर भागों में विभाजित होकर दो नए जीव बनाता है, तो इसे द्विखंडन कहते हैं।
➤ यह विधि बैक्टीरिया, अमीबा, यीस्ट, पैरामिशियम, युग्लिना आदि में पाई जाती है।
➤ इस प्रक्रिया में पूरा जीव दो समान हिस्सों में विभाजित हो जाता है।

(ii) बहुखंडन (Multiple Fission) –
जब एक जीव कई हिस्सों में विभाजित होकर अनेक नए जीव उत्पन्न करता है, तो इसे बहुखंडन कहते हैं।

मुकुलन (Budding)

मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन होता है जिसमें जनक जीव के शरीर से एक छोटी सी कलिका (उभार) निकलती है जिसे मुकुल (bud) कहते हैं।
➤ यह मुकुल धीरे-धीरे बढ़कर एक पूर्ण जीव बन जाता है।
➤ यह विधि यीस्ट, हाइड्रा, और स्पंज जैसे जीवों में देखी जाती है।

पुनर्जनन (Regeneration)

पुनर्जनन वह प्रक्रिया है जिसमें जीव का शरीर यदि किसी कारणवश कई टुकड़ों में विभाजित हो जाए, तो प्रत्येक भाग एक नया जीव बन सकता है।
➤ इस प्रकार का जनन हाइड्रा, प्लेनेरिया और स्पाइरोगाइरा जैसे जीवों में देखा जाता है।
➤ यह प्रक्रिया तब होती है जब शरीर का प्रत्येक खंड अपने खोए हुए भागों की पूर्ति कर लेता है।

बीजाणुजनन (Spore Formation)

बीजाणुजनन में जीव विशेष प्रकार के सूक्ष्म बीजाणुओं का निर्माण करते हैं जो अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर नए जीवों का निर्माण करते हैं।
➤ यह प्रक्रिया जीवाणु, शैवाल और कवक जैसे निम्न श्रेणी के जीवों में पाई जाती है।
➤ बीजाणु विशेष संरचनाओं (बीजाणुधानियों) में बनते हैं और अंकुरित होकर नए पौधे बनाते हैं।

पौधों में कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation in Plants)

जब किसी पौधे के शरीर का कोई भाग जैसे – जड़, तना या पत्ती – उससे अलग होकर एक नया पौधा बना देता है, तो इस प्रक्रिया को कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
➤ कायिक प्रवर्धन दो प्रकार से होता है –
(i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural Vegetative Propagation)
(ii) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial Vegetative Propagation)

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पौधे स्वयं अपने किसी अंग से करते हैं, जैसे –

  • जड़ों द्वारा (जैसे शकरकंद)
  • तनों द्वारा (जैसे आलू)
  • पत्तियों द्वारा (जैसे बृफी)

कृत्रिम कायिक प्रवर्धन मनुष्यों द्वारा किया जाता है। इसमें प्रमुख विधियाँ हैं –

  • कलम द्वारा (cutting)
  • रोपण द्वारा (planting)
  • दाब-कलम द्वारा (layering)

➤ यह प्रवर्धन आमतौर पर गुलाब, अंगूर, ऑर्किड और अन्य सजावटी पौधों में होता है।

ऊतक संवर्धन (Tissue Culture)

इस प्रकार के कृत्रिम कायिक (Vegetative) प्रवर्धन में किसी स्वस्थ और अच्छे गुणों वाले पौधे से ऊतक (Tissue) का एक छोटा टुकड़ा काटकर लिया जाता है। इस ऊतक को पोषक तत्वों से युक्त एक विशेष माध्यम (जैसे जेल या घोल) में रखा जाता है जो एक साफ बर्तन में होता है।
कुछ समय बाद यह ऊतक विभाजित होकर एक पिंड के रूप में विकसित हो जाता है जिसे कैलस (Callus) कहा जाता है।

➤ ऊतक संवर्धन, कायिक प्रवर्धन की एक आधुनिक और वैज्ञानिक विधि है।
➤ इस विधि का प्रयोग गुलदाउदी, शतावरी, ऑर्किड जैसे पौधों में नए पौधे तैयार करने के लिए किया जाता है।
➤ इस प्रक्रिया से तैयार पौधों को एकपूर्वज (Clone) कहा जाता है क्योंकि ये सभी पौधे एक ही माता-पिता से उत्पन्न होते हैं और उनके जैसे ही होते हैं।

2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi

जनन की वह विधि जिसमें दो भिन्न लिंग — एक नर और एक मादा — की भागीदारी होती है, उसे लैंगिक जनन कहते हैं। इस प्रक्रिया में दोनों लिंग अपने-अपने जनन कोशिकाएं (गैमीट्स) बनाते हैं।

➤ नर युग्मक (Male gamete) को शुक्राणु (Sperm) कहते हैं और मादा युग्मक (Female gamete) को अंडाणु (Ovum) कहते हैं।
➤ शुक्राणु आकार में छोटा और चलायमान (गतिशील) होता है, जबकि अंडाणु बड़ा और अचल (निश्चल) होता है।
➤ नर और मादा युग्मकों का मिलन निषेचन (Fertilization) कहलाता है।
➤ निषेचन के फलस्वरूप जो एकल कोशिका बनती है उसे युग्मनज (Zygote) कहा जाता है।
➤ यही युग्मनज आगे विभाजित होकर विकसित होता है और अंततः एक नया संपूर्ण जीव बनाता है।

➤ लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों में बाँटा गया है:

(i) एकलिंगी (Unisexual):
जब किसी जीव में केवल नर या केवल मादा लक्षण होते हैं, तो ऐसे जीवों को एकलिंगी कहा जाता है।
उदाहरण: पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, कबूतर, मछली, मेंढ़क आदि।
➤ जो जीव केवल शुक्राणु बनाते हैं, उन्हें नर जीव कहते हैं।
➤ जो जीव केवल अंडाणु बनाते हैं, उन्हें मादा जीव कहते हैं।

(ii) द्विलिंगी (Bisexual):
जब एक ही जीव में नर और मादा दोनों लक्षण होते हैं, तो उन्हें द्विलिंगी या उभयलिंगी कहा जाता है।
उदाहरण: सरसों, गुड़हल, केंचुआ, हाइड्रा, क्रीमी आदि।

पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Flowering Plants)

पुष्पी पौधों में फूल ही जनन का मुख्य भाग होता है क्योंकि इनमें नर और मादा जनन अंग पाए जाते हैं जो प्रजनन की क्रिया करते हैं।

Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi

➤ फूल (Flower) आमतौर पर एक डंठल से जुड़ा होता है जिसे वृंत कहा जाता है।
➤ वृंत के सिरे पर स्थित फूल का फूला हुआ और चपटा भाग पुष्पासन (Thalamus) कहलाता है।

फूल के चार प्रमुख भाग होते हैं —
(i) बाह्यदलपुंज (Calyx)
(ii) दलपुंज (Corolla)
(iii) पुमंग (Androecium) — नर जनन अंग
(iv) जायांग (Gynoecium) — मादा जनन अंग

➤ बाह्यदलपुंज और दलपुंज को सहायक अंग (Accessory Organs) कहते हैं क्योंकि ये फूल को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं तथा आवश्यक अंगों की सुरक्षा करते हैं।
➤ पुमंग और जायांग को आवश्यक अंग (Essential Organs) कहते हैं क्योंकि ये सीधे जनन में भाग लेते हैं।
➤ जब फूल में केवल पुमंग या केवल जायांग हो, तो उसे एकलिंगी पुष्प कहते हैं।
➤ जब दोनों एक ही फूल में हों, तो उसे उभयलिंगी पुष्प कहते हैं।

पुमंग (Androecium)

यह फूल का नर भाग होता है, जिसमें कई पतली रचनाएँ होती हैं जिन्हें पुंकेसर (Stamens) कहा जाता है।

➤ प्रत्येक पुंकेसर के दो भाग होते हैं —
(i) तंतु (Filament): यह एक पतली, लचीली डोरी जैसी संरचना होती है जो पुष्पासन से जुड़ी रहती है।
(ii) परागकोश (Anther): यह पुंकेसर का शीर्ष भाग होता है जिसमें पीले रंग का बारीक चूर्ण होता है जिसे परागकण (Pollen Grains) कहा जाता है।

जायांग (Gynoecium)

यह फूल का मादा भाग होता है जो स्त्रीकेसर (Carpels) से बना होता है।

➤ एक स्त्रीकेसर के तीन मुख्य भाग होते हैं —
(i) अंडाशय (Ovary): यह सबसे निचला और आधारभूत भाग होता है, जो पुष्पासन से जुड़ा होता है। इसके भीतर बीजांड (Ovule) पाए जाते हैं, जिनमें अंडाणु होते हैं।
(ii) वर्तिका (Style): यह अंडाशय से ऊपर की ओर जाने वाली पतली संरचना होती है।
(iii) वर्तिकाग्र (Stigma): यह वर्तिका के ऊपरी सिरे पर स्थित होता है, जो चिपचिपा और फूला हुआ होता है। यही परागकणों को पकड़ता है।

परागण (Pollination)

जब परागकण परागकोश से बाहर निकलकर वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं, तब इस क्रिया को परागण कहते हैं।

परागण दो प्रकार का होता है —
(i) स्व-परागण (Self-Pollination): जब परागकण उसी पुष्प के या उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं।
(ii) पर-परागण (Cross-Pollination): जब परागकण एक पौधे के पुष्प से दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं। इसके लिए बाहरी सहायक कारकों की आवश्यकता होती है जैसे — कीट, पक्षी, वायु, जल, मनुष्य आदि।

निषेचन (Fertilization) :-

जब नर युग्मक (शुक्राणु) और मादा युग्मक (अंडाणु) आपस में मिलते हैं और उनका संयोजन होता है, तो इस प्रक्रिया को निषेचन कहा जाता है
➤ पादपों (plants) में यह प्रक्रिया बीजांड (ovule) के अंदर होती है।

मनुष्य का प्रजनन तंत्र (Human Reproductive System)

मनुष्य एक एकलिंगी (unisexual) प्राणी है, अर्थात नर और मादा के जनन अंग अलग-अलग व्यक्तियों में पाए जाते हैं। इन्हीं जनन अंगों के आधार पर व्यक्ति को पुरुष या नारी कहा जाता है

➤ आमतौर पर मानव के जनन अंग लगभग 12 वर्ष की आयु के बाद परिपक्व (mature) होकर सक्रिय होने लगते हैं। इस समय को ही किशोरावस्था (adolescence) कहा जाता है, जिसमें शरीर में कई बदलाव आने लगते हैं।

➤ किशोरावस्था में लड़कों और लड़कियों के शरीर में कुछ खास बदलाव होते हैं, जैसे — काँख, जांघों के बीच और जनन अंग के पास बाल उगने लगते हैं। चेहरे की त्वचा तैलीय हो जाती है और फुंसियाँ आ सकती हैं। साथ ही, विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी महसूस होने लगता है।

➤ लड़कियों में स्तनों में उभार आने लगता है और स्तनाग्र के चारों ओर की त्वचा गहरी होने लगती है। इस अवस्था में मासिक धर्म (menstruation) शुरू होता है।

➤ वहीं लड़कों में मूंछ-दाढ़ी उगना शुरू हो जाता है, वृषण में शुक्राणु बनने लगते हैं और शिश्न (penis) का आकार बढ़ने लगता है।

➤ यह सारी शारीरिक और मानसिक बदलाओं की स्थिति यौवनारंभ (puberty) कहलाती है, जो शरीर में बनने वाले हार्मोन की वजह से होती है।

नर जनन अंग (Male Reproductive Organs)

Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi

पुरुष के जनन अंगों में शामिल होते हैं –

  • दो वृषण (Testes)
  • अधिवृषण (Epididymis)
  • शुक्रवाहिनी (Vas deferens)
  • शिश्न (Penis)
  • और कुछ सहायक ग्रंथियाँ जैसे – पुरःस्थ ग्रंथि (Prostate gland) व काऊपर ग्रंथि (Cowper’s gland)।

वृषण :-

वृषण नर जनन तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि यहीं पर नर युग्मक यानी शुक्राणु बनते हैं
➤ प्रत्येक पुरुष में दो वृषण होते हैं, जो जांघों के बीच स्थित थैली जैसी त्वचा, जिसे वृषणकोष (scrotum) कहते हैं, में मौजूद रहते हैं।
➤ प्रत्येक वृषण के अंदर कई कुंडलित नलिकाएं होती हैं, जिन्हें शुक्रजनन नलिकाएं कहा जाता है – इन्हीं में शुक्राणु विकसित होते हैं।

अधिवृषण :-

यह एक लंबी, कुंडलित नलिका होती है, जो वृषण से जुड़ी होती है और शुक्राणुओं को परिपक्व और सक्रीय बनाती है।
➤ अधिवृषण से निकलने वाली नली को शुक्रवाहिनी (vas deferens) कहते हैं।

शुक्रवाहिनी :-

यह लगभग 25 सेमी लंबी मांसल नलिका है, जो मूत्राशय की ओर जाती है
➤ यह नली शुक्राशय की नलिका से मिलकर स्खलन नली (ejaculatory duct) बनाती है।

स्खलन नली :-

स्खलन नलियां पुरःस्थ ग्रंथि (prostate gland) में प्रवेश करती हैं और आगे चलकर मूत्राशय की नली के साथ जुड़कर मूत्रमार्ग (urethra) बनाती हैं।

मूत्रमार्ग :-

यह एक लम्बी नलिका होती है जो शिश्न के मध्य से होकर मूत्र और वीर्य दोनों के बहिर्गमन का मार्ग बनाती है।
➤ इसमें पुरःस्थ ग्रंथि और काऊपर ग्रंथि की नलिकाएं भी खुलती हैं।

पुरःस्थ ग्रंथि :-

यह मूत्राशय के नीचे स्थित एक गोल आकार की ग्रंथि है।
➤ यह पुरःस्थ द्रव निकालती है, जो शुक्राणु द्रव और शुक्राशय द्रव के साथ मिलकर वीर्य बनाता है
➤ यही द्रव शुक्राणुओं को सक्रिय करता है और वीर्य में एक विशेष गंध पैदा करता है।

काऊपर ग्रंथि (Cowper’s Gland) :-

यह दो छोटी ग्रंथियाँ होती हैं जो पुरःस्थ ग्रंथि के ठीक नीचे स्थित होती हैं।
➤ ये एक क्षारीय द्रव छोड़ती हैं जो मूत्रमार्ग की दीवार को सुरक्षित रखता है।
➤ यह द्रव योनि की अम्लीयता को कम करता है, जिससे शुक्राणु सुरक्षित रहते हैं।

शिश्न (Penis) :-

यह एक बेलनाकार, मांसल अंग है, जो पुरुष का मैथुन अंग होता है।
➤ शिश्न का शीर्ष भाग ग्लांस (glans) कहलाता है और इसके ऊपर की त्वचा को प्रिप्युस (prepuce) कहते हैं।
➤ शिश्न का मुख्य कार्य निषेचन के लिए शुक्राणुओं को स्त्री की योनि तक पहुँचाना होता है।

शुक्राणु (Sperm) :-

शुक्राणु बहुत ही छोटे, गतिशील और एककोशिकीय संरचनाएँ होती हैं, जिनका निर्माण पुरुषों के वृषण (testes) में स्थित शुक्रजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) में होता है। इन्हें नर युग्मक (male gametes) कहा जाता है, क्योंकि ये निषेचन की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

मादा-जनन अंग (Female Reproductive Organs) :-

Class 10th Biology Chapter 3 Notes in Hindi

मादा के जनन अंगों में निम्नलिखित भाग सम्मिलित होते हैं —
अंडाशय (Ovary), फैलोपिअन नलिका (Fallopian Tube), गर्भाशय (Uterus), योनि (Vagina), वल्वा (Vulva)।

अंडाशय (Ovary) :-

प्रत्येक स्त्री के शरीर में अंडाशय की एक जोड़ी (pair) पाई जाती है।
➤ हर अंडाशय पतली परितोनियम झिल्ली के सहारे उदरगुहा की पीठ की ओर स्थित दीवार से जुड़ा रहता है।
➤ यह संयोजी ऊतक की एक परत ट्युनिका एल्बुजिनिया से ढका होता है, जिसके ठीक नीचे जनन एपिथीलियम (germinal epithelium) पाया जाता है।
➤ इसी एपिथीलियम से अंडाणुओं का निर्माण होता है।

फैलोपिअन नलिका (Fallopian Tube) :-

यह एक जोड़ी चौड़ी और पतली नलिकाएँ होती हैं जो अंडाशय के ऊपरी सिरे से शुरू होकर गर्भाशय से जाकर जुड़ती हैं।
➤ इनकी दीवार मांसल और संकुचनशील होती है, जिससे अंडाणु को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है।
➤ अंदर की सतह पर छोटे-छोटे रोमक (cilia) होते हैं, जो अंडाणु को धीरे-धीरे गर्भाशय की ओर ले जाते हैं।
➤ इन्हीं नलिकाओं के ज़रिए अंडाणु गर्भाशय तक पहुँचता है।

गर्भाशय (Uterus) :-

गर्भाशय एक मोटी दीवार वाली पेशीय थैली की तरह होता है, जो श्रोणि गुहा (pelvic cavity) में मूत्राशय और मलाशय के बीच स्थित रहता है।
➤ गर्भाशय की भीतरी गुहा में ही भ्रूण (embryo) का विकास होता है।
➤ इसकी सामान्य लंबाई लगभग 7–8 सेमी होती है, लेकिन गर्भावस्था में यह आकार में बढ़ जाता है।
➤ इसका निचला भाग ग्रीवा (cervix) कहलाता है, जो नीचे जाकर योनि में खुलता है।

योनि (Vagina) :-

योनि एक पेशीय नली के समान संरचना है, जिसकी लंबाई लगभग 7–10 सेमी होती है।
➤ इसकी दीवारें पेशी और संयोजी तंतुओं से बनी होती हैं।
➤ यह बाहरी ओर एक छिद्र से वल्वा द्वारा खुलती है, जो पतली झिल्ली हायमेन से आंशिक रूप से ढकी होती है।
➤ मैथुन (copulation) के समय योनि पुरुष के शिश्न (penis) को ग्रहण करती है जिससे स्खलित वीर्य मादा जननांग में प्रवेश करता है।
➤ प्रसव, मासिक स्त्राव तथा मूत्र का निष्कासन भी इसी मार्ग से होता है।

मासिक चक्र (Menstrual Cycle) :-

स्त्रियों में यौन परिपक्वता सामान्यतः 10 से 12 वर्ष की आयु में प्रारंभ होती है, जब शरीर में मासिक रूप से कुछ परिवर्तन होने लगते हैं। इन्हीं चक्रीय प्रक्रियाओं को मासिक चक्र या मासिक धर्म कहते हैं।
➤ यह चक्र लगभग 28 दिनों का होता है और हर 28 दिन में दोहराया जाता है।
➤ मासिक चक्र पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित हार्मोनों के प्रभाव में चलता है।
➤ 14वें दिन परिपक्व अंडाणु अंडाशय से बाहर निकलता है, जिसे अंडोत्सर्ग (ovulation) कहते हैं।
➤ यह अंडाणु फैलोपिअन नलिका में पहुँचता है। इसके बाद फॉलिकिल का शेष भाग पीला होकर पितपिंड (corpus luteum) बनाता है।
➤ पितपिंड से प्रोजेस्टेरोन नामक हार्मोन निकलता है जो गर्भाशय की दीवार को और अधिक मोटा बना देता है।
➤ यदि 36 घंटे के भीतर निषेचन नहीं होता, तो अंडाणु नष्ट हो जाता है और दो सप्ताह बाद योनि से मासिक स्त्राव के रूप में बाहर निकल जाता है।
➤ यह स्त्राव 3 से 5 दिन तक चलता है।
➤ यदि निषेचन हो जाए, तो भ्रूण का विकास गर्भाशय में शुरू हो जाता है और मासिक धर्म रुक जाता है।
➤ गर्भावस्था की अवधि में नया अंडाणु नहीं बनता।
➤ लगभग 45–50 वर्ष की उम्र में मासिक धर्म स्थायी रूप से बंद हो जाता है, जिसे रजोनिवृत्ति (menopause) कहते हैं।

लैंगिक जनन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases – STDs) :-

ऐसे संक्रामक रोग जो यौन संबंध के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे में फैलते हैं, उन्हें लैंगिक जनन संचारित रोग कहा जाता है।
➤ ये रोग अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीवों जैसे – बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ आदि से होते हैं।
➤ ये जीव जननांगों जैसे योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या मुख में उपस्थित नम एवं गर्म वातावरण में पनपते हैं।
➤ प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं:

(i) बैक्टीरिया जनित रोग – गोनोरिया (Gonorrhoea), सिफलिस (Syphilis), युरेथ्राइटिस (Urethritis), सर्विसाइटिस (Cervicitis)

(ii) वायरस जनित रोग – सर्विक्स कैंसर, हर्पिस (Herpes), एड्स (AIDS)
➤ एड्स HIV वायरस के संक्रमण से होता है।

(iii) प्रोटोजोआ जनित रोग – ट्राइकोमोनिएसिस (Trichomoniasis)

जनसंख्या- नियंत्रण (Population Control) :-

जब किसी देश या क्षेत्र की जनसंख्या को सीमित रखने के लिए कुछ उपाय अपनाए जाते हैं, तो उस प्रक्रिया को जनसंख्या-नियंत्रण कहा जाता है।
➤ जनसंख्या को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका परिवार नियोजन है। इससे अनावश्यक जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है।
➤ संतानोत्पत्ति को रोकने या सीमित करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं, जिन्हें नीचे समझाया गया है —

1. प्राकृतिक विधि (Natural Method)

इस विधि में किसी प्रकार के उपकरण या दवा का उपयोग नहीं किया जाता।
➤ स्त्री के मासिक चक्र के 14वें दिन के आसपास अंडोत्सर्ग (ovulation) होता है। यदि इस समय और इसके बाद के कुछ दिनों तक संभोग से बचा जाए, तो अंडाणु का निषेचन नहीं होगा और गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है।

2. यांत्रिक विधि (Mechanical Method)

इस विधि में गर्भाधान को रोकने के लिए यंत्रों या उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
पुरुषों के लिए: कंडोम (Condom) का प्रयोग।
स्त्रियों के लिए: डायाफ्राम (Diaphragm), कॉपर-T, लूप आदि का उपयोग किया जाता है।
ये सभी साधन शुक्राणु और अंडाणु के मिलन को रोकते हैं, जिससे गर्भधारण नहीं हो पाता।

3. रासायनिक विधि (Chemical Method)

इस विधि में गर्भधारण को रोकने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
➤ उदाहरण: गर्भ-निरोधक क्रीम, जैल, स्प्रे, और गर्भ-निरोधक गोलियाँ
➤ ये पदार्थ शुक्राणु को निष्क्रिय कर देते हैं या अंडाणु के निषेचन को रोकते हैं।

4. शल्य चिकित्सा विधि (Surgical Method)

यह एक स्थायी और अधिक प्रभावी विधि है, जिसे केवल संतान नहीं चाहने वाले दंपति के लिए अपनाया जाता है।
पुरुष नसबंदी (Vasectomy): पुरुषों में शुक्राणु वाहिनी को काट दिया जाता है जिससे शुक्राणु बाहर नहीं आ पाते।
स्त्री नसबंदी (Tubectomy): स्त्रियों में फैलोपिअन नलिका को बाँध दिया जाता है जिससे अंडाणु गर्भाशय में नहीं पहुँच पाते।

निष्कर्ष (Conclusion)

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