Class 10th Physics Chapter 2 Notes in Hindi – मानव नेत्र एवं रंगीन संसार (The Human Eye and The Colourful World) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल और स्पष्ट हिंदी भाषा में तैयार सम्पूर्ण नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं। यह नोट्स विशेष रूप से CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्यों के हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए बनाए गए हैं ताकि वे इस अध्याय को आसानी से समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त कर सकें।
इस अध्याय में हमने मानव नेत्र की संरचना, नेत्र दोष (निकट दृष्टिदोष, दूर दृष्टिदोष, दृष्टिवैषम्य) और उनके सुधार के तरीके, प्रकाश का विक्षेपण, इंद्रधनुष का निर्माण, सूर्यास्त के समय आकाश का लाल दिखना, तथा प्रकाश के फैलाव के कारण जैसे सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को विस्तारपूर्वक और बोर्ड पैटर्न के अनुसार समझाया है।
हर विषय को स्पष्ट चित्रों, सारणियों और मुख्य सूत्रों के साथ इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि यह तेज़ी से रिवीजन और अंतिम तैयारी दोनों के लिए उपयोगी है।
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Class 10th Physics Chapter 2 Notes in Hindi

✸ मानव नेत्र (Human Eye)
मानव नेत्र एक अत्यंत अद्भुत और जटिल प्राकृतिक प्रकाशीय यंत्र (Optical Instrument) है, जो प्रकाश के अपवर्तन (Refraction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। यह आँखों में आने वाले प्रकाश के माध्यम से किसी वस्तु का अस्थायी वास्तविक प्रतिबिंब (Real and Inverted Image) बनाता है, जिससे हम उस वस्तु को देख पाते हैं।
✸ बनावट (Structure of Human Eye)
मानव नेत्र लगभग गोलीय आकार (Spherical in shape) का होता है और इसका व्यास लगभग 2.3 से.मी. होता है। इसकी बनावट कई परतों से मिलकर बनी होती है:
➤ 1. बाहरी परत – स्क्लेरोटिक (Sclerotic or Sclera)
यह नेत्रगोलक की सबसे बाहरी, सफ़ेद और मोटी अपारदर्शी झिल्ली होती है। इसे स्वेतपटल (White Part of Eye) कहा जाता है। यह आँख को आकार और सुरक्षा प्रदान करती है।
➤ 2. कॉर्निया (Cornea)
आँख का सामने का हल्का उभरा हुआ पारदर्शी भाग कॉर्निया कहलाता है। यह नेत्रगोलक की आंतरिक संरचनाओं की रक्षा करता है और प्रकाश किरणों को अपवर्तित कर लेंस की ओर भेजता है।
➤ 3. कोरोयड (Choroid)
यह स्क्लेरा के नीचे स्थित गहरी भूरी परत होती है, जिसमें रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels) होती हैं। यह नेत्र को पोषण देती है और अनावश्यक प्रकाश के परावर्तन को रोकती है।
➤ 4. रेटिना (Retina)
यह नेत्र की सबसे भीतरी प्रकाश-संवेदनशील परत है, जिसे दृष्टिपटल कहा जाता है। इसमें प्रकाश-संवेदक कोशिकाएँ (Rods और Cones) होती हैं।
- Rods मंद प्रकाश में देखने में सहायक होती हैं।
- Cones रंगों और तीव्र प्रकाश में देखने में सहायक होती हैं।
रेटिना पर ही वस्तु का वास्तविक, उल्टा और लघु प्रतिबिंब बनता है।
➤ 5. नेत्र लेंस (Eye Lens)
यह एक पारदर्शी, द्वि-उत्तल (Convex) लेंस होता है, जो रेशों से बनी कश्मलिका (Ciliary Muscles) द्वारा अपनी स्थिति और मोटाई बदल सकता है। यह रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब बनाता है।
➤ 6. काचाभ द्रव (Vitreous Humour)
लेंस और रेटिना के बीच का स्थान काचाभ द्रव (Vitreous Humour) से भरा होता है, जो नेत्रगोलक का आकार बनाए रखता है और प्रकाश किरणों को रेटिना तक पहुँचाने में सहायता करता है।
➤ 7. आईरिस (Iris) और पुतली (Pupil)
कॉर्निया और लेंस के बीच का भाग आईरिस कहलाता है। यह रंगीन झिल्ली होती है, जो आँख का रंग निर्धारित करती है। इसके केंद्र में एक छोटा छिद्र (Pupil) होता है, जो प्रकाश की तीव्रता के अनुसार बड़ा या छोटा होता है:
- तीव्र प्रकाश में पुतली सिकुड़ जाती है।
- मंद प्रकाश में पुतली फैल जाती है।

✸ सिद्धांत (Principle)
मानव नेत्र प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणें लेंस द्वारा अपवर्तित होकर रेटिना पर वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनाती हैं। यह प्रतिबिंब दृष्टि-तंतु (Optic Nerve) के माध्यम से मस्तिष्क (Brain) को भेजा जाता है, जहाँ मस्तिष्क उस उल्टे प्रतिबिंब को सीधा कर देता है, जिससे हमें वस्तु का वास्तविक रूप दिखाई देता है।
✸ मानव नेत्र की देखने की क्रियाविधि (Working of Human Eye)
जब किसी वस्तु से परावर्तित प्रकाश किरणें आँख में प्रवेश करती हैं, तो वे कॉर्निया, आईरिस, और नेत्र लेंस से होकर गुजरती हैं। लेंस इन किरणों को अपवर्तित कर रेटिना पर केंद्रित करता है। रेटिना पर बनने वाला प्रतिबिंब वास्तविक, उल्टा और लघु होता है।
दृष्टि तंतु इस प्रतिबिंब की सूचना मस्तिष्क के दृश्य केंद्र (Visual Center) तक पहुँचाता है, जहाँ मस्तिष्क इसे सीधा रूप में पहचानता है — और इसी प्रकार हम वस्तुओं को स्पष्ट रूप में देख पाते हैं।
✸ समंजन-क्षमता (Power of Accommodation)
मानव नेत्र में ऐसी अद्भुत क्षमता होती है कि वह दूर और पास की वस्तुओं को समान रूप से स्पष्ट देख सकता है।
यह संभव होता है क्योंकि कश्मलिका पेशियाँ (Ciliary Muscles) नेत्र लेंस की फोकस दूरी (Focal Length) को बदल देती हैं।
- दूर की वस्तु देखने पर लेंस पतला हो जाता है।
- पास की वस्तु देखने पर लेंस मोटा हो जाता है।
नेत्र की इस लेंस-संशोधन क्षमता को समंजन-क्षमता (Power of Accommodation) कहा जाता है।
✸ स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (Least Distance of Distinct Vision)
जिस न्यूनतम दूरी तक कोई वस्तु स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, उसे स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहा जाता है।
इसे D से सूचित किया जाता है।
सामान्य नेत्र के लिए यह दूरी लगभग 25 से.मी. होती है।
✸ मानव नेत्र का दूर बिंदु (Far Point of Human Eye)
वह सबसे दूर का बिंदु, जहाँ स्थित वस्तु को नेत्र बिना समंजन किए स्पष्ट देख सकता है, दूर-बिंदु (Far Point) कहलाता है।
इसे F से सूचित किया जाता है।
सामान्य नेत्र का दूर बिंदु अनंत दूरी (Infinity) पर होता है।
✸ मानव नेत्र का निकट बिंदु (Near Point of Human Eye)
वह सबसे निकट बिंदु, जहाँ स्थित वस्तु को नेत्र समंजन की क्रिया द्वारा स्पष्ट देख सकता है, निकट-बिंदु (Near Point) कहलाता है।
इसे N से सूचित किया जाता है।
एक सामान्य स्वस्थ नेत्र के लिए यह दूरी लगभग 25 से.मी. होती है।
दूर-बिंदु और निकट-बिंदु के बीच की दूरी को दृष्टि-परास (Range of Vision) कहा जाता है।
✸ दृष्टि दोष (Defects of Vision)
कभी-कभी कुछ कारणों से मानव नेत्र (Human Eye) दूर या निकट स्थित वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंब रेटिना पर नहीं बना पाता, जिससे व्यक्ति वस्तुओं को धुंधला या अस्पष्ट देखता है।
ऐसी स्थिति को दृष्टि दोष (Defect of Vision) कहा जाता है।
मानव नेत्र में पाए जाने वाले मुख्य दृष्टि दोष तीन प्रकार के होते हैं —
- निकट-दृष्टि दोष (Myopia or Short-Sightedness)
- दूर-दृष्टि दोष (Hypermetropia or Long-Sightedness)
- जरा-दूरदर्शिता (Presbyopia)
(1) ✸ निकट-दृष्टि दोष (Short-Sightedness or Myopia)
यह ऐसा नेत्र दोष है, जिसमें व्यक्ति निकट की वस्तु को स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर की वस्तु को धुंधला देखता है।
इस दोष में वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर न बनकर रेटिना के आगे बनता है।
✦ दोष के कारण :
निकट-दृष्टि दोष निम्न कारणों से उत्पन्न होता है —
(i) नेत्रगोलक का लम्बा हो जाना, जिससे लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाती है।
(ii) नेत्र लेंस का अधिक मोटा होना, जिससे उसकी फोकस दूरी (Focal Length) कम हो जाती है।
इन दोनों कारणों से दूर स्थित वस्तुओं से आने वाली प्रकाश किरणें रेटिना से पहले ही फोकस हो जाती हैं।
✦ उपचार :
इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस (Concave Lens) का चश्मा उपयोग किया जाता है।
अवतल लेंस दूर स्थित वस्तुओं से आने वाली प्रकाश किरणों को प्रसारित (Diverge) करता है, जिससे वे रेटिना पर सही स्थान पर फोकस हो सकें और वस्तु स्पष्ट दिखाई दे।
(2) ✸ दूर-दृष्टि दोष (Far-Sightedness or Hypermetropia)
यह ऐसा दृष्टि दोष है, जिसमें व्यक्ति दूर की वस्तु को तो स्पष्ट देख सकता है, लेकिन निकट की वस्तु धुंधली दिखाई देती है।
इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है।
✦ दोष के कारण :
दूर-दृष्टि दोष के प्रमुख कारण निम्न हैं —
(i) नेत्रगोलक का छोटा हो जाना, जिससे लेंस और रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाती है।
(ii) लेंस का अधिक पतला होना, जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है।
इन कारणों से निकट वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें रेटिना तक पहुँचने से पहले ही पर्याप्त रूप से अभिसरित नहीं हो पातीं।
✦ उपचार :
इस दोष को सुधारने के लिए उत्तल लेंस (Convex Lens) का उपयोग किया जाता है।
उत्तल लेंस किरणों को अभिसरित (Converge) कर देता है, जिससे वे रेटिना पर सही रूप से फोकस होती हैं और निकट की वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है।
(3) ✸ जरा-दूरदर्शिता (Presbyopia)
यह दृष्टि दोष अधिक उम्र के लोगों में सामान्यतः पाया जाता है।
इसमें व्यक्ति को निकट और दूर — दोनों प्रकार की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं दिखाई देतीं।
अर्थात् यह दोष निकट-दृष्टि और दूर-दृष्टि दोष दोनों का मिश्रण होता है।
✦ दोष के कारण :
यह दोष मुख्यतः सिलियरी पेशियों (Ciliary Muscles) के कमजोर हो जाने और लेंस की लचीलापन (Elasticity) कम होने के कारण होता है।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, नेत्र लेंस का आकार बदलने की क्षमता घट जाती है, जिससे समंजन क्रिया (Accommodation) ठीक से नहीं हो पाती।
✦ उपचार :
इस दोष को सुधारने के लिए बाइफोकल (Bifocal) लेंस का उपयोग किया जाता है।
इसमें एक ही चश्मे में दो प्रकार के लेंस होते हैं —
- ऊपरी भाग में दूर की वस्तुओं को देखने हेतु उत्तल लेंस,
- निचला भाग में निकट वस्तुओं को देखने हेतु अवतल लेंस लगाया जाता है।
इस प्रकार व्यक्ति को नजदीक और दूर दोनों वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं।
✸ मानव नेत्र और फोटोग्राफिक कैमरा में समानता (Similarities between Human Eye and Photographic Camera)
मानव नेत्र और फोटोग्राफिक कैमरा, दोनों ही प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करते हैं और इनकी कार्यप्रणाली में कई समानताएँ होती हैं। नीचे दी गई सारणी में दोनों के बीच की समानताएँ स्पष्ट रूप से दी गई हैं —
| मानव नेत्र (Human Eye) | फोटोग्राफिक कैमरा (Photographic Camera) |
| 1. यह प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है। | 1. यह भी प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है। |
| 2. यह प्राकृतिक उत्तल लेंस (Convex Lens) का बना होता है। | 2. यह भी उत्तल लेंस का बना होता है। |
| 3. यह वस्तु का वास्तविक एवं उल्टा प्रतिबिंब रेटिना पर बनाता है। | 3. यह भी वस्तु का वास्तविक एवं उल्टा प्रतिबिंब फिल्म या सेंसर पर बनाता है। |
| 4. इसमें अनेक संवेदनशील भाग (जैसे रेटिना, ऑप्टिक नर्व) होते हैं। | 4. इसमें भी कई संवेदनशील भाग (जैसे फिल्म या डिजिटल सेंसर) होते हैं। |
✸ मानव नेत्र और फोटोग्राफिक कैमरा में असमानता (Differences between Human Eye and Photographic Camera)
हालाँकि दोनों की कार्यप्रणाली समान है, परंतु संरचना और कार्य के कुछ बिंदुओं पर ये भिन्न हैं। नीचे दी गई सारणी में प्रमुख अंतर दर्शाए गए हैं —
| मानव नेत्र (Human Eye) | फोटोग्राफिक कैमरा (Photographic Camera) |
| 1. यह वस्तु का अस्थायी प्रतिबिंब (Temporary Image) बनाता है। | 1. यह वस्तु का स्थायी प्रतिबिंब (Permanent Image) बनाता है। |
| 2. यह प्राकृतिक उत्तल लेंस से बना होता है। | 2. यह कृत्रिम उत्तल लेंस (Artificial Lens) से बना होता है। |
| 3. इसकी फोकस दूरी (Focal Length) स्वतः परिवर्तित हो सकती है, क्योंकि सिलियरी पेशियाँ इसे नियंत्रित करती हैं। | 3. कैमरे की फोकस दूरी मैन्युअल या ऑटोमैटिक रूप से लेंस घुमाकर बदली जाती है, स्वतः नहीं। |
| 4. आँख में प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करने के लिए पुतली (Pupil) कार्य करती है। | 4. कैमरे में प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करने के लिए शटर (Shutter) कार्य करता है। |
✸ वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction)
वायुमंडलीय अपवर्तन का अर्थ है — पृथ्वी के वायुमंडल की विभिन्न घनत्व वाली परतों में से गुजरते समय प्रकाश किरणों का मुड़ना (Refraction)।
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं —
- तारों का टिमटिमाना (Twinkling of Stars):
वायुमंडल की परतों के घनत्व और तापमान में लगातार परिवर्तन होता रहता है। इससे तारों से आने वाली प्रकाश किरणें बार-बार मुड़ती हैं, जिसके कारण तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं। - सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बढ़ जाना:
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी पर तब भी पहुँचती हैं जब सूर्य वास्तविक रूप से क्षितिज से नीचे होता है।
इस कारण से सूर्योदय पहले और सूर्यास्त बाद में दिखाई देता है। परिणामस्वरूप, दिन की अवधि लगभग 4 मिनट तक बढ़ जाती है।
✸ प्रिज़्म (Prism)
प्रिज़्म एक पारदर्शी त्रिकोणीय ठोस (Transparent Triangular Solid) होता है, जो सामान्यतः काँच या प्लास्टिक का बना होता है।
इसकी तीन अपवर्तक सतहें (Refracting Surfaces) होती हैं और इनमें से कोई भी दो सतहें समांतर नहीं होतीं।
✸ प्रिज़्म का कोण (Angle of Prism)
प्रिज़्म की दो अपवर्तक सतहों के बीच का कोण प्रिज़्म का कोण (Angle of Prism) कहलाता है।
इसे प्रायः A से सूचित किया जाता है।
✸ प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light)
जब श्वेत प्रकाश (White Light) किसी प्रिज़्म से होकर गुजरता है, तो यह अपने विभिन्न रंगों (Different Colours) में विभाजित हो जाता है।
इस घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light) कहा जाता है।
➤ श्वेत प्रकाश वास्तव में कई रंगों का मिश्रण होता है, जिनमें मुख्य रूप से सात रंग शामिल हैं —
बैंगनी (Violet), नीला (Indigo), आसमानी (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange), और लाल (Red) —
इनका संक्षिप्त रूप VIBGYOR है।
✸ वर्ण पट्ट (Spectrum)
जब श्वेत प्रकाश किसी प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो यह अपने सात घटक रंगों में विभाजित हो जाता है। इन सातों रंगों से बनी हुई रंगीन पट्टी को वर्ण पट्ट (Spectrum) कहा जाता है।
➤ श्वेत प्रकाश के सात रंग (VIBGYOR):
ये सात रंग क्रमशः — बैगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) और लाल (Red) हैं।
इन रंगों के पहले अक्षरों से बना शब्द VIBGYOR (वायलेट, इंडिगो, ब्लू, ग्रीन, येलो, ऑरेंज, रेड) श्वेत प्रकाश के सभी रंगों का प्रतिनिधित्व करता है।
➤ महत्वपूर्ण तथ्य:
- बैगनी (Violet) प्रकाश का तरंगदैर्घ्य (Wavelength) सबसे कम होता है, इसलिए यह सबसे अधिक मुड़ता (विक्षेपित होता) है।
- लाल (Red) प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक होता है, इसलिए इसका विचलन सबसे कम होता है।
- श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण (Dispersion) में रंगों का यह क्रम हमेशा समान रहता है — ऊपर बैगनी और नीचे लाल रंग दिखाई देता है।
✸ प्रकाश के विभिन्न वर्ण और उनके तरंगदैर्घ्य (Wavelength Range)
| वर्ण (रंग) | तरंगदैर्घ्य (नैनोमीटर में) |
| बैगनी (Violet) | 400 – 440 nm |
| जामुनी (Indigo) | 440 – 460 nm |
| नीला (Blue) | 460 – 500 nm |
| हरा (Green) | 500 – 570 nm |
| पीला (Yellow) | 570 – 590 nm |
| नारंगी (Orange) | 590 – 620 nm |
| लाल (Red) | 620 – 700 nm |
🔹 तरंगदैर्घ्य जितना कम होगा, रंग उतना अधिक विचलित होगा।
🔹 यह पूरा क्षेत्र दृश्य वर्णक्रम (Visible Spectrum) कहलाता है, जिसे हमारी आँखें देख सकती हैं।
✸ श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण कैसे है?
प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइज़ैक न्यूटन (Isaac Newton, 1642–1727) ने सबसे पहले प्रिज्म (Prism) की सहायता से सूर्य के प्रकाश का वर्णपट (Spectrum) प्राप्त किया।
उन्होंने देखा कि जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से गुजरता है, तो वह सात रंगों में विभाजित हो जाता है।
इसके बाद न्यूटन ने एक दूसरा प्रिज्म प्रयोग में लिया, और उसे पहले प्रिज्म के विपरीत दिशा में रखा।
दूसरे प्रिज्म से गुजरने पर वे सातों रंग पुनः मिलकर श्वेत प्रकाश बन गए।
इस प्रयोग से न्यूटन ने निष्कर्ष निकाला कि —
सूर्य का प्रकाश वास्तव में सात रंगों का मिश्रण है।
अर्थात् कोई भी प्रकाश जो सूर्य के समान वर्णपट दे, वही श्वेत प्रकाश कहलाता है।
✸ इंद्रधनुष (Rainbow)
जब वर्षा के बाद सूर्य चमकता है और हम सूर्य की ओर पीठ करके खड़े होते हैं, तब आकाश में एक अर्धवृत्ताकार रंगीन पट्टी दिखाई देती है, जिसे इंद्रधनुष (Rainbow) कहा जाता है।
इंद्रधनुष का निर्माण सूर्य के श्वेत प्रकाश के अपवर्तन (Refraction), परावर्तन (Reflection) और विक्षेपण (Dispersion) के कारण होता है।
➤ कैसे बनता है इंद्रधनुष:
- वर्षा की असंख्य जल-बूंदें छोटे प्रिज्म की तरह व्यवहार करती हैं।
- जब सूर्य का प्रकाश इन बूंदों में प्रवेश करता है, तो वह मुड़कर सात रंगों में विभक्त हो जाता है।
- ये सातों रंग हमारी आँखों तक पहुँचते हैं और आकाश में अर्धवृत्ताकार रंगीन पट्टी बनाते हैं।
इंद्रधनुष में रंगों का क्रम ऊपर से नीचे की ओर — बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल होता है।
✸ प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
जब प्रकाश किरणें वायुमंडल में उपस्थित धूल, धुएँ या अणुओं से टकराती हैं और विभिन्न दिशाओं में बिखर जाती हैं, तो इस प्रक्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light) कहा जाता है।
➤ प्रकीर्णन से संबंधित उदाहरण:
- आकाश का नीला रंग:
सूर्य के प्रकाश की नीली किरणें वायु के अणुओं से अधिक प्रकीर्णित होती हैं, इसलिए दिन के समय आकाश हमें नीला दिखाई देता है। - सूर्यास्त या सूर्योदय के समय सूर्य लाल दिखना:
उस समय प्रकाश को वायुमंडल में लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे नीली किरणें अधिक प्रकीर्णित होकर हट जाती हैं और केवल लाल किरणें हमारी आँखों तक पहुँचती हैं। - समुद्र का नीला रंग:
सूर्य के प्रकाश की छोटी तरंगदैर्घ्य वाली नीली किरणें जल के अणुओं से प्रकीर्णित होकर हमारी आँखों तक पहुँचती हैं, इसलिए समुद्र नीला दिखाई देता है।
➤ महत्वपूर्ण तथ्य:
प्रकाश के पथ में आने वाले सूक्ष्म कण विभिन्न दिशाओं में प्रकाश को प्रकीर्णित करते हैं।
इसी कारण हम प्रकाश के पथ को देख पाते हैं, क्योंकि प्रत्येक बिंदु से प्रकीर्णित किरणें हमारी आँखों तक पहुँचती हैं।
✸ कोलॉइड (Colloid)
परिभाषा:
जब किसी माध्यम में किसी अन्य पदार्थ के अत्यंत सूक्ष्म कण समान रूप से निलंबित (Suspended) रहते हैं, तो ऐसे मिश्रण को कोलॉइड (Colloid) कहा जाता है।
➤ कोलॉइड के उदाहरण:
- दूध: एक कोलॉइड है जिसमें छोटे-छोटे वसा (Fat) के कण पानी में निलंबित रहते हैं।
- धुआँ: यह भी एक कोलॉइड है जिसमें राख या कार्बन के सूक्ष्म कण वायु में निलंबित रहते हैं।
- कुहासा (Fog): यह जल की अत्यंत सूक्ष्म बूंदों से बनता है, जो वायु में तैरती रहती हैं — अतः यह भी कोलॉइड का उदाहरण है।
🔹 कोलॉइड विलयन का आकार सच्चे विलयन (True Solution) और निलंबन (Suspension) के बीच का होता है।
🔹 कोलॉइड कणों का आकार लगभग 1 से 1000 नैनोमीटर (nm) तक होता है।
✸ टिंडल प्रभाव (Tyndall Effect)
जब किसी कोलॉइड विलयन में निलंबित कणों पर प्रकाश डाला जाता है, तो ये कण उस प्रकाश को विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णित (Scatter) करते हैं।
इस प्रकार के प्रकाश के प्रकीर्णन को ही टिंडल प्रभाव (Tyndall Effect) कहा जाता है।
🔹 यह प्रभाव सबसे पहले वैज्ञानिक जॉन टिंडल (John Tyndall) ने खोजा था।
🔹 इस प्रभाव के कारण हम कोलॉइड विलयन में प्रकाश का पथ दिखाई देता है।
उदाहरण:
- जब अंधेरे कमरे में किसी खिड़की से धूप आती है, तो हवा में तैरते धूल के कणों के कारण प्रकाश का पथ स्पष्ट दिखता है — यह टिंडल प्रभाव का उदाहरण है।
✸ प्रकाश के विभिन्न रंगों का प्रकीर्णन (Scattering of Different Colours of Light)
प्रकाश के विभिन्न रंगों का प्रकीर्णन कणों के आकार (Size) पर निर्भर करता है।
- बहुत सूक्ष्म कण कम तरंगदैर्घ्य (Short Wavelength) वाले रंगों — जैसे नीला (Blue) या बैंगनी (Violet) — को अधिक प्रकीर्णित करते हैं।
- बड़े कण लंबे तरंगदैर्घ्य (Long Wavelength) वाले रंगों — जैसे लाल (Red) — को कम प्रकीर्णित करते हैं।
➤ महत्वपूर्ण उदाहरण:
- नीले रंग की तरंगदैर्घ्य कम होने के कारण यह अधिक प्रकीर्णित होता है।
- लाल रंग की तरंगदैर्घ्य अधिक होने के कारण यह सबसे कम प्रकीर्णित होता है।
इसलिए जब श्वेत प्रकाश सूक्ष्म कणों पर पड़ता है, तो नीला रंग सबसे अधिक बिखरता है और लाल रंग सबसे कम।
➤ विभिन्न स्थितियों में प्रकीर्णन के उदाहरण:
- धुआँ नीला दिखाई देना:
जब धुएँ में सूक्ष्म राख के कण होते हैं, तो वे नीले रंग का अधिक प्रकीर्णन करते हैं, इसलिए धुआँ हल्का नीला दिखाई देता है। - बादल सफेद दिखाई देना:
बादलों में जल की बूंदें अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं, इसलिए वे सभी रंगों का समान रूप से प्रकीर्णन करती हैं — परिणामस्वरूप बादल सफेद दिखते हैं।
✸ आकाश का रंग (Colour of the Sky)
जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से होकर गुजरता है, तो वह गैसों के अणुओं, जल-बूंदों और धूल-कणों से टकराकर विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णित होता है।
वायुमंडल में उपस्थित गैसों के अणु अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, जो नीले रंग की किरणों को सबसे अधिक प्रकीर्णित करते हैं।
इसी प्रकीर्णित नीली रोशनी के कारण आकाश हमें नीला दिखाई देता है।
➤ अंतरिक्ष और चंद्रमा पर आकाश काला क्यों दिखाई देता है?
क्योंकि वहाँ वायुमंडल नहीं होता, इसलिए सूर्य के प्रकाश का कोई प्रकीर्णन नहीं होता।
इसी कारण चंद्रमा पर खड़े अंतरिक्ष यात्री को आकाश काला (Black) दिखाई देता है।
✸ सूर्य का रंग (Colour of the Sun)
सूर्य का रंग दिन के अलग-अलग समय पर भिन्न दिखाई देता है, और इसका कारण भी प्रकाश का प्रकीर्णन ही है।
➤ दोपहर के समय:
जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है, तब उसका प्रकाश वायुमंडल की सबसे कम मोटाई से गुजरता है।
इस स्थिति में प्रकीर्णन बहुत कम होता है, इसलिए सूर्य हमें श्वेत या हल्का पीला दिखाई देता है — जो उसका वास्तविक रंग है।
➤ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय:
उस समय सूर्य क्षितिज के पास होता है, और उसकी किरणों को वायुमंडल की अधिक दूरी तय करनी पड़ती है।
इस दौरान नीली और बैगनी किरणें अधिक प्रकीर्णित होकर हट जाती हैं, जबकि लाल रंग की लंबी तरंगें हमारी आँखों तक पहुँचती हैं।
इसी कारण सूर्य लाल या नारंगी दिखाई देता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
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