Class 10th Physics Chapter 5 Notes in Hindi | ऊर्जा के स्रोत (Source of Energy) Free PDF Notes Download

Class 10th Physics Chapter 5 Notes in Hindiऊर्जा के स्रोत (Source of Energy) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल, स्पष्ट और परीक्षा-उपयोगी संपूर्ण नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं।
यह नोट्स विशेष रूप से CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्य बोर्डों के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए हैं, ताकि वे इस अध्याय के प्रत्येक सिद्धांत को आसानी से समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त कर सकें।

इस अध्याय में हमने ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों जैसे – पारंपरिक स्रोत (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) और गैर–पारंपरिक स्रोत (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, महासागरीय तापीय ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा) को विस्तारपूर्वक और बोर्ड पैटर्न के अनुसार समझाया है।

साथ ही, इस अध्याय में प्रत्येक ऊर्जा स्रोत की कार्यविधि, लाभ, हानियाँ, उपयोग, और पर्यावरणीय प्रभाव को भी सरल उदाहरणों और स्पष्ट व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया गया है।

हर विषय को परिभाषाओं, चित्रों, सूत्रों और मुख्य बिंदुओं के माध्यम से इस प्रकार समझाया गया है कि विद्यार्थी इसे आसानी से याद रख सकें और परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।

अगर आप Class 10th Physics Chapter 5 – ऊर्जा के स्रोत (Source of Energy) को एकदम आसान भाषा में समझना चाहते हैं और बोर्ड परीक्षा में शानदार प्रदर्शन करना चाहते हैं,
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Table of Contents

Class 10th Physics Chapter 5 Notes in Hindi

Class 10th Physics Chapter 5 Notes in Hindi
Class 10th Physics Chapter 5 Notes in Hindi

✸ ऊर्जा (Energy):

कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहा जाता है। किसी भी वस्तु के द्वारा किया गया कार्य तभी संभव है जब उसमें ऊर्जा विद्यमान हो या ऊर्जा का उपभोग किया जाए।
अर्थात् ऊर्जा वह मूल शक्ति है जो किसी वस्तु या प्रणाली को गति प्रदान करती है या परिवर्तन लाती है।

➣ यह एक अदिश राशि (Scalar Quantity) है, अर्थात् इसका केवल परिमाण होता है, दिशा नहीं।
➣ इसका एस.आई. मात्रक जूल (Joule) होता है।
➣ ऊर्जा के कई रूप पाए जाते हैं — जैसे यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy), ऊष्मा ऊर्जा (Heat Energy), प्रकाश ऊर्जा (Light Energy), विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy), रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy) तथा नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) आदि।

✦ ऊर्जा की आवश्यकता (Need of Energy):

दैनिक जीवन के प्रत्येक कार्य में ऊर्जा की अत्यंत आवश्यकता होती है। बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य संभव नहीं है।
हमारे जीवन में ऊर्जा का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में होता है —

  • भोजन पकाने के लिए (Cooking)
  • घर, विद्यालय या उद्योगों में प्रकाश उत्पन्न करने के लिए (Lighting)
  • परिवहन और यातायात (Transportation) के साधनों को चलाने के लिए
  • मशीनों और उपकरणों (Machines & Tools) को चलाने के लिए
  • उद्योगिक उत्पादन और कृषि कार्यों (Industrial & Agricultural Works) में
  • प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया के लिए, जिससे पौधे अपना भोजन बनाते हैं

इन सभी कार्यों के लिए ऊर्जा किसी न किसी रूप में आवश्यक होती है।

✸ ऊर्जा के स्रोत (Sources of Energy):

वे वस्तुएँ या पदार्थ जिनसे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा के स्रोत कहा जाता है।
इन स्रोतों से हम ऊष्मा, प्रकाश या यांत्रिक शक्ति जैसी उपयोगी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

उदाहरण: कोयला (Coal), पेट्रोलियम (Petroleum), प्राकृतिक गैस (Natural Gas), लकड़ी (Wood), सूर्य (Sun), जल (Water), पवन (Wind), जैव-गैस (Biogas) आदि।

ऊर्जा के स्रोतों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जाता है —

  1. पारंपरिक (Conventional) स्रोत: कोयला, लकड़ी, जल, पेट्रोलियम आदि।
  2. अपरंपरागत (Non-Conventional) स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत, परमाणु ऊर्जा आदि।

✦ ऊर्जा का अच्छा स्रोत (Good Source of Energy):

ऊर्जा का अच्छा स्रोत वह होता है जो —

  • प्रति इकाई द्रव्यमान या आयतन में अधिक कार्य करने की क्षमता रखे।
  • सुलभ और आसानी से उपलब्ध हो।
  • जिसका भंडारण (Storage) और परिवहन (Transportation) सरल और सुरक्षित हो।
  • जो सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल हो।
  • जिसका उपयोग करने पर हानिकारक गैसें या प्रदूषण न फैलता हो।

अर्थात् एक अच्छा ऊर्जा स्रोत वह होता है जो प्रभावी, सस्ता, स्वच्छ और लंबे समय तक उपलब्ध हो।

✸ ईंधन (Fuel):

ऐसे पदार्थ जिन्हें जलाने (दहन करने) पर ऊष्मा ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ईंधन (Fuel) कहा जाता है।
ईंधन हमारे जीवन का प्रमुख ऊर्जा स्रोत है, जो वाहन चलाने, खाना पकाने, बिजली उत्पादन और उद्योगों के संचालन में प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण: कोयला, पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी का तेल, एलपीजी गैस, प्राकृतिक गैस, बायोगैस आदि।

✦ अच्छे ईंधन के गुण (Characteristics of a Good Fuel):

एक अच्छा ईंधन वह होता है जो अधिक ऊष्मा प्रदान करे और पर्यावरण के लिए हानिकारक न हो। इसके प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं —

  • जलने पर अधिक ऊष्मा (Heat Energy) उत्पन्न करे।
  • आसानी से उपलब्ध और सस्ता हो।
  • कम धुआँ (Less Smoke) और कम प्रदूषण उत्पन्न करे।
  • भंडारण और परिवहन में सुरक्षित और सरल हो।
  • जिसकी दहन दर (Rate of Combustion) मध्यम हो ताकि नियंत्रण में रखा जा सके।
  • जलने पर विषैले उत्पाद (Toxic Substances) जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड आदि उत्पन्न न करे।
  • ईंधन का ऊष्मीय मान (Calorific Value) अधिक होना चाहिए ताकि कम मात्रा में अधिक ऊर्जा प्राप्त हो सके।

✸ ऊर्जा के स्रोत (Sources of Energy)

ऊर्जा के स्रोत वे माध्यम हैं जिनसे हमें कार्य करने के लिए आवश्यक शक्ति या ऊर्जा प्राप्त होती है। इन स्रोतों को मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा गया है —

पारंपरिक ऊर्जा स्रोत (Conventional Sources)गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत (Non-Conventional Sources)
1. जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels)2. तापीय विद्युत संयंत्र (Thermal Power Plant)3. जल विद्युत संयंत्र (Hydroelectric Power Plant)4. जैव-द्रव्यमान (Biomass)5. पवन ऊर्जा (Wind Energy)1. सौर ऊर्जा (Solar Energy) – जैसे सौर कुकर, सौर पैनल आदि2. सागर से प्राप्त ऊर्जा (Ocean Energy) – ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, महासागरीय तापीय ऊर्जा3. भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy)4. नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy)

✸ ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत (Conventional Sources of Energy)

वे ऊर्जा स्रोत जो लंबे समय से मानव द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं, उन्हें पारंपरिक ऊर्जा स्रोत कहा जाता है। ये स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं और अक्सर प्रदूषण भी फैलाते हैं।

1. जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels)

: जीवाश्म ईंधन वे ईंधन हैं जो करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी की परतों के नीचे दबे पौधों और पशुओं के अवशेषों से बनते हैं।

उदाहरण: कोयला (Coal), पेट्रोलियम (Petroleum), और प्राकृतिक गैस (Natural Gas)।

➣ जीवाश्म ईंधन अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Non-Renewable Source) हैं, क्योंकि इन्हें बनने में लाखों वर्ष लगते हैं और ये जल्दी समाप्त हो जाते हैं।

✦ जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न प्रदूषण / हानियाँ:

  • जीवाश्म ईंधन के जलने पर कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड वातावरण में फैलते हैं, जो वायु प्रदूषण और अम्ल वर्षा (Acid Rain) का कारण बनते हैं।
  • अम्ल वर्षा से मृदा की उर्वरता घटती है और जल स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
  • इनके दहन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड गैस (CO₂) ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) को बढ़ाती है, जिससे वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming) होती है।

✦ प्रदूषण को कम करने के उपाय:

  1. दहन प्रक्रिया की दक्षता बढ़ाकर ईंधन की खपत कम की जा सकती है।
  2. नई तकनीकों (Modern Technologies) का उपयोग कर ईंधन जलने के बाद उत्पन्न गैसों को वातावरण में जाने से पहले फिल्टर या उपचारित (Treat) किया जा सकता है।
  3. जहाँ संभव हो, वहाँ स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर या पवन ऊर्जा) का प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए।

2. तापीय विद्युत संयंत्र (Thermal Power Plant)

तापीय विद्युत संयंत्रों में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस जैसे ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, जो जल को भाप में बदलती है। यह भाप टर्बाइन घुमाकर विद्युत ऊर्जा (Electric Energy) उत्पन्न करती है।

➣ ये संयंत्र आमतौर पर कोयला या तेल क्षेत्रों के पास बनाए जाते हैं ताकि परिवहन लागत कम हो सके।
विद्युत ऊर्जा का संचरण (Transmission), कोयला या तेल के परिवहन की तुलना में अधिक दक्ष और आर्थिक होता है।

हानि:
तापीय विद्युत संयंत्रों से धुआँ, राख और कार्बन गैसें निकलती हैं जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनती हैं।

3. जल-विद्युत संयंत्र (Hydroelectric Power Plant)

परिभाषा:
जल विद्युत संयंत्र वे संयंत्र हैं जो गिरते हुए जल की स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।

➣ चूँकि प्राकृतिक जलप्रपात बहुत कम होते हैं, इसलिए जल विद्युत संयंत्र आमतौर पर बाँध (Dams) के माध्यम से बनाए जाते हैं।
➣ बाँधों में संग्रहीत जल को ऊँचाई से नीचे गिराया जाता है जिससे टर्बाइन घूमती हैं और बिजली उत्पन्न होती है।
➣ जल विद्युत ऊर्जा एक नवीकरणीय (Renewable) तथा स्वच्छ (Clean) ऊर्जा स्रोत है, क्योंकि इसमें ईंधन का दहन नहीं होता।

लाभ:

  • जल विद्युत संयंत्रों से प्रदूषण नहीं होता
  • एक बार बाँध बन जाने पर बिजली कम लागत पर लगातार उत्पन्न की जा सकती है।

हानि:

  • बाँधों के निर्माण से वनों की कटाई और स्थानीय आबादी का विस्थापन होता है।
  • जलाशयों में गाद जमने से उनकी भंडारण क्षमता घट जाती है।

✸ जल – विद्युत (Hydroelectric Power)

जल विद्युत संयंत्रों में गिरते हुए जल की स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) को यांत्रिक ऊर्जा में और फिर विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Renewable Energy Source) है क्योंकि इसमें ईंधन का उपयोग नहीं किया जाता और प्रदूषण भी नहीं होता।

✦ जल – विद्युत के लाभ (Advantages of Hydroelectric Energy):

  1. यह प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा स्रोत है।
    जल विद्युत संयंत्रों से धुआँ या हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होतीं, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है।
  2. उत्पादन लागत कम होती है।
    प्रारंभिक बाँध निर्माण के बाद, बिजली उत्पादन की लागत अन्य संयंत्रों की तुलना में बहुत कम होती है।
  3. बाढ़ नियंत्रण में सहायक।
    बाँधों में जल संग्रहित होने से अचानक आने वाली बाढ़ों को रोका जा सकता है।
  4. सिंचाई में उपयोगी।
    बाँधों में संग्रहित जल का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता है, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है।
  5. परिवहन की सुविधा।
    बाँधों और जलाशयों के निर्माण से नौपरिवहन (Water Transport) की सुविधाएँ बढ़ती हैं।

✦ जल – विद्युत की हानियाँ (Disadvantages of Hydroelectric Energy):

  1. सीमित स्थानों पर ही निर्माण संभव।
    बाँध केवल कुछ विशेष स्थानों — जैसे पहाड़ी क्षेत्रों — में ही बनाए जा सकते हैं जहाँ पर्याप्त जल प्रवाह और ऊँचाई हो।
  2. कृषि भूमि और आबादी पर प्रभाव।
    बाँध निर्माण के कारण बड़ी मात्रा में भूमि जलमग्न हो जाती है जिससे खेती योग्य भूमि और गाँवों को खाली करना पड़ता है।
  3. पारिस्थितिक तंत्र का विनाश।
    जलाशयों के निर्माण से अनेक वनस्पतियाँ, जीव-जंतु और उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं।
  4. ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन।
    डूबे हुए पेड़-पौधे सड़कर मीथेन (Methane) गैस उत्पन्न करते हैं, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  5. पुनर्वास की समस्या।
    बाँध निर्माण के कारण विस्थापित लोगों का उचित पुनर्वास कर पाना सरकारों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।

✸ जैवद्रव्यमान (Biomass):

कृषि अपशिष्ट, पशु अपशिष्ट और वनस्पति अवशेष जिन्हें ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है, उन्हें जैवद्रव्यमान (Biomass) कहा जाता है।

उदाहरण: लकड़ी, सूखे पत्ते, गोबर के उपले (कंडे), भूसा आदि।

➣ जैवद्रव्यमान को जलाने पर ऊष्मा तो उत्पन्न होती है, लेकिन ये कम उष्मा देते हैं और अधिक धुआँ उत्पन्न करते हैं। इसलिए इनके सुधार (Improvement) की आवश्यकता होती है।

✦ लकड़ी से हानियाँ (Disadvantages of Using Wood as Fuel):

  • लकड़ी जलने पर अधिक धुआँ उत्पन्न करती है जिससे वायु प्रदूषण होता है।
  • इसमें ऊष्मीय क्षमता कम (Low Calorific Value) होती है, यानी यह अधिक ऊर्जा उत्पन्न नहीं करती।
  • वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण असंतुलन और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।

इसलिए उपकरणों की तकनीक में सुधार करके पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की दक्षता बढ़ाई जा सकती है।
एक प्रमुख सुधार है — लकड़ी से चारकोल (Charcoal) बनाना।

✸ चारकोल (Charcoal):

जब लकड़ी को ऑक्सीजन की सीमित आपूर्ति (Limited Oxygen Supply) में जलाया जाता है, तब उसमें उपस्थित पानी और वाष्पशील पदार्थ निकल जाते हैं और शेष ठोस पदार्थ चारकोल कहलाता है।

✦ चारकोल के गुण (Characteristics of Charcoal):

  • जलने पर बहुत कम धुआँ उत्पन्न करता है।
  • इसकी ऊष्मा उत्पादन क्षमता (Calorific Value) अधिक होती है।
  • यह बिना लौ (Flame) के जलता है, जिससे यह अधिक सुरक्षित और नियंत्रित ईंधन है।

चारकोल का उपयोग धातु गलाने, पकाने और औद्योगिक प्रक्रियाओं में व्यापक रूप से किया जाता है।

✸ बायोगैस (Biogas):

जब गोबर, फसल के अवशेष, पौधों के टुकड़े, रसोई के कचरे, और मल-मूत्र जैसे जैविक पदार्थ ऑक्सीजन की अनुपस्थिति (Anaerobic Condition) में सड़ते या अपघटित होते हैं, तो बायोगैस का निर्माण होता है।

यह प्रक्रिया विशेष प्रकार के बायोगैस संयंत्रों (Biogas Plants) में की जाती है।

बायोगैस की संरचना:
इसमें मुख्यतः निम्नलिखित गैसें होती हैं —

  • मीथेन (CH₄) – लगभग 55% से 70%
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) – लगभग 30% से 40%
  • हाइड्रोजन (H₂) और हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S) – अल्प मात्रा में

बायोगैस के उपयोग:

  • खाना पकाने में ईंधन के रूप में
  • बिजली उत्पादन में
  • कृषि अपशिष्ट के पुनः उपयोग में
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा के रूप में

✦ बायोगैस संयंत्र (Biogas Plant)

बायोगैस संयंत्र एक ईंटों से बनी गुंबदाकार संरचना होती है, जिसका उपयोग बायोगैस बनाने के लिए किया जाता है। इस संयंत्र में गोबर और पानी का मिश्रण तैयार कर उसे मिश्रण टंकी (Mixing Tank) में डाला जाता है। वहाँ से यह मिश्रण पाचित्र (Digester) में पहुँचाया जाता है।

पाचित्र एक बंद कोष (closed chamber) होता है, जहाँ ऑक्सीजन की अनुपस्थिति (Anaerobic condition) रहती है। इस वातावरण में ऐसे सूक्ष्मजीवाणु (Anaerobic Bacteria) सक्रिय रहते हैं जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती। ये जीवाणु गोबर के जटिल यौगिकों को विघटित कर देते हैं।

इस विघटन प्रक्रिया (Decomposition process) के परिणामस्वरूप बायोगैस का निर्माण होता है। तैयार बायोगैस पाचित्र के ऊपर स्थित गैस टंकी में इकट्ठा की जाती है। इसके बाद इसे पाइप के माध्यम से घरों, चूल्हों या अन्य उपयोगों के लिए भेजा जाता है।

बायोगैस में लगभग 75% मिथेन (Methane) पाया जाता है, जो एक प्रभावशाली ईंधन है और आसानी से जलकर ऊर्जा उत्पन्न करता है।

✦ बायोगैस के लाभ (Advantages of Biogas)

  1. सस्ता और सुलभ ऊर्जा स्रोत: बायोगैस का निर्माण स्थानीय संसाधनों जैसे गोबर और अपशिष्ट पदार्थों से होता है, जिससे यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक किफायती ऊर्जा विकल्प है।
  2. सुविधाजनक उपयोग: इसे आसानी से रसोई गैस की तरह उपयोग किया जा सकता है।
  3. स्वच्छ ईंधन: बायोगैस जलने पर धुआँ या हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं करती, जिससे पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता।
  4. अपशिष्ट प्रबंधन में सहायक: यह अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का एक सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल तरीका है।
  5. खाद का उत्पादन: बायोगैस बनने के बाद बचा हुआ गारा उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खाद (Organic Manure) के रूप में खेतों में उपयोग किया जा सकता है।

✦ पवन ऊर्जा (Wind Energy)

पवन ऊर्जा का स्रोत सौर विकिरण (Solar Radiation) है। जब सूर्य की किरणें भूमि और जलाशयों को असमान रूप से गर्म करती हैं, तो वायु का तापमान और दबाव बदलता है। इस कारण वायु गति उत्पन्न होती है, जिसे हम पवन (Wind) कहते हैं।

पवन की इस गति से चलने वाले यंत्र को पवन चक्की (Wind Mill) कहा जाता है। एक अकेली पवन चक्की से ऊर्जा उत्पादन कम होता है, इसलिए कई पवन चक्कियों को एक साथ स्थापित किया जाता है। इस समूह को पवन ऊर्जा फार्म (Wind Energy Farm) कहा जाता है।

पवन चक्की को सुचारु रूप से चलाने के लिए वायु की गति कम से कम 15–20 किलोमीटर प्रति घंटे होनी आवश्यक है। यदि गति इससे कम हो, तो विद्युत उत्पादन संभव नहीं हो पाता।

डेनमार्क को “पवनों का देश” कहा जाता है क्योंकि वहाँ पवन ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग होता है। भारत पवन ऊर्जा उत्पादन में विश्व में पाँचवें स्थान पर है। देश के तमिलनाडु राज्य में कन्याकुमारी के समीप स्थापित पवन ऊर्जा फार्म लगभग 38 मेगावाट (MW) विद्युत उत्पन्न करता है।

✦ पवन ऊर्जा के उपयोग (Uses of Wind Energy)

पवन की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy of Wind) का उपयोग कई कार्यों में किया जा सकता है, जैसे —

  • कुओं से पानी निकालने के लिए,
  • विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिए,
  • और अनाज पीसने वाली चक्कियों को चलाने के लिए।

✦ पवन ऊर्जा के लाभ (Advantages of Wind Energy)

  1. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: पवन ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती क्योंकि यह प्राकृतिक स्रोत — वायु — से प्राप्त होती है।
  2. पर्यावरण के अनुकूल: इसमें किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता, इसलिए यह एक स्वच्छ ऊर्जा विकल्प है।
  3. कम खर्च में उत्पादन: बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे इसकी संचालन लागत बहुत कम रहती है।

✦ पवन ऊर्जा की सीमाएँ (Limitations of Wind Energy)

  1. स्थान पर निर्भरता: पवन ऊर्जा संयंत्र केवल उन्हीं स्थानों पर लगाए जा सकते हैं जहाँ पूरे वर्ष पर्याप्त वायु प्रवाह हो।
  2. वायु गति की आवश्यकता: पवन चक्कियों को चलाने के लिए कम से कम 15 किलोमीटर प्रति घंटे की गति आवश्यक होती है, अन्यथा उत्पादन रुक जाता है।
  3. उच्च प्रारंभिक लागत: पवन ऊर्जा फार्म की स्थापना में प्रारंभिक लागत काफी अधिक होती है, जिससे छोटे निवेशक इसे अपनाने में सक्षम नहीं होते।

✸ गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत (Non-Conventional Energy Sources)

आज के समय में वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ ऊर्जा की मांग प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। औद्योगिकरण, शहरीकरण और तकनीकी विकास ने ऊर्जा के उपभोग को कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों (Alternative Energy Sources) का उपयोग करें जो न केवल सतत (Sustainable) हों बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हों।

जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। यदि वर्तमान दर से इनका उपयोग जारी रहा तो ये शीघ्र समाप्त हो जाएंगे। साथ ही इनसे निकलने वाला धुआँ और कार्बन डाइऑक्साइड गैस पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं। इसलिए मानव को अब ऐसे गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना होगा जो नवीकरणीय (Renewable) और पर्यावरण-अनुकूल (Eco-friendly) हों।

1. सौर ऊर्जा (Solar Energy)

सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा है। सूर्य पृथ्वी पर सभी प्रकार की उर्जा का मुख्य स्रोत (Primary Source) है। सूर्य की किरणों में उपस्थित ऊर्जा का उपयोग विभिन्न उपकरणों की सहायता से किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा के उपयोग हेतु मुख्य उपकरण हैं —

  • सौर कुकर (Solar Cooker)
  • सौर सेल (Solar Cell)

✦ सौर कुकर (Solar Cooker)

सौर कुकर एक ऐसा उपकरण है जिसमें सूर्य की उष्मा का उपयोग करके भोजन पकाया जाता है। यह एक उष्मारोधी (Heat-insulated) बक्से के रूप में बनाया जाता है, जिसके अंदरूनी भाग को काला रंग (Black Paint) किया जाता है ताकि सूर्य की अधिकतम ऊष्मा अवशोषित हो सके।

बक्से को काँच की शीट से ढक दिया जाता है और सामने की ओर एक समतल दर्पण (Plane Mirror) लगाया जाता है ताकि सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर अंदर पहुँचे और तापमान बढ़ सके। लगभग 2 से 3 घंटे में बक्से के अंदर का तापमान 100°C से 140°C तक पहुँच जाता है, जिससे भोजन आसानी से पक जाता है।

✦ सौर कुकर के लाभ:

  1. यह सस्ता और सरल उपकरण है।
  2. इसमें धुआँ या प्रदूषण नहीं होता, जिससे पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचती।
  3. जीवाश्म ईंधन की बचत होती है क्योंकि कोयला या गैस की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  4. एक साथ अनेक व्यंजन बनाए जा सकते हैं।

✦ सौर कुकर की हानियाँ:

  1. इसका उपयोग केवल दिन के समय ही किया जा सकता है।
  2. यह सिर्फ गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में अधिक प्रभावी होता है।
  3. इसमें तलने या रोटी पकाने जैसे कार्य नहीं किए जा सकते।
  4. सर्दियों या बादलों वाले दिनों में भोजन पकाने में अधिक समय लगता है।

✦ सौर सेल (Solar Cell)

सौर सेल वह युक्ति है जो सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा (Electric Energy) में परिवर्तित करती है।
एक सामान्य सौर सेल लगभग 0.5 से 1 वोल्ट (Volt) तक विद्युत विभव उत्पन्न करता है।

जब बड़ी संख्या में सौर सेल को एक साथ जोड़ा जाता है, तो उसे सौर पैनल (Solar Panel) कहा जाता है। यही पैनल विद्युत उत्पादन के लिए घरों, ट्रैफिक सिग्नल, और सैटेलाइट में लगाए जाते हैं।

✦ सौर सेल के लाभ:

  1. इसका रख-रखाव बहुत कम होता है।
  2. इसे दूरदराज़ या कठिन क्षेत्रों में भी स्थापित किया जा सकता है।
  3. यह कृत्रिम उपग्रहों (Satellites) और अंतरिक्ष अनुसंधान यानों में प्रमुख ऊर्जा स्रोत है।
  4. कैलकुलेटर, घड़ियाँ और यातायात संकेतक (Traffic Signals) में भी सौर सेल का प्रयोग किया जाता है।

✦ सौर सेल की हानियाँ:

  1. उच्च कीमत के कारण घरेलू उपयोग सीमित है।
  2. सौर सेल बनाने में प्रयुक्त सिलिकॉन (Silicon) दुर्लभ और महंगा पदार्थ है।

2. ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy)

ज्वारीय ऊर्जा समुद्र के ज्वार-भाटा (Tides) से प्राप्त की जाती है। पृथ्वी पर चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वीय खिंचाव (Gravitational Pull) के कारण सागर का जल ऊपर उठता और नीचे गिरता है। इस प्रक्रिया में जल की स्थिति बदलने से ऊर्जा उत्पन्न होती है।

इस ऊर्जा का दोहन करने के लिए समुद्र तट पर बाँध (Dam) बनाए जाते हैं। जब ज्वार उठता है तो जल बाँध के एक तरफ इकट्ठा होता है, और जब जल नीचे गिरता है तो उसकी गति से टरबाइन (Turbine) घूमती है, जिससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।

3. तरंग ऊर्जा (Wave Energy)

समुद्र की सतह पर लगातार उठने वाली तरंगें (Waves) भी एक सशक्त ऊर्जा स्रोत हैं। इन तरंगों की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) को मशीनों या टरबाइनों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है।

हालाँकि, तरंग ऊर्जा का व्यावहारिक उपयोग केवल उन्हीं स्थानों पर संभव है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल होती हैं, जैसे — समुद्र के गहरे तटीय क्षेत्र।

4. महासागरीय तापीय ऊर्जा (Ocean Thermal Energy)

सागर की सतह का पानी सूर्य की ऊष्मा से गर्म हो जाता है, जबकि गहराई में स्थित पानी अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। इन दोनों के तापमान के अंतर (Temperature Difference) का उपयोग करके महासागरीय तापीय ऊर्जा (Ocean Thermal Energy) प्राप्त की जाती है।

इसके लिए विशेष प्रकार के संयंत्र — OTEC Plants (Ocean Thermal Energy Conversion Plants) — बनाए जाते हैं, जो इस ऊष्मा के अंतर से विद्युत उत्पादन करते हैं।

5. भू-तापीय ऊर्जा (Geothermal Energy)

पृथ्वी के अंदर का भाग अत्यधिक गर्म होता है। जब भूमिगत जल (Ground Water) इन तप्त चट्टानों के संपर्क में आता है, तो वह भाप (Steam) में परिवर्तित हो जाता है। यह भाप जब उच्च दाब (High Pressure) पर पाइपों से होकर निकलती है, तो टरबाइन को घुमाती है, और इस प्रकार विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हिमालयी क्षेत्र, झारखंड, और छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में पाए जाते हैं।

✦ भू-तापीय ऊर्जा के लाभ:

  1. इससे प्रदूषण नहीं होता है।
  2. विद्युत उत्पादन की लागत अन्य स्रोतों की तुलना में कम होती है।
  3. यह मुफ्त, नवीकरणीय और सतत (Renewable and Sustainable) ऊर्जा स्रोत है।

✸ नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy)

आज के आधुनिक युग में, जब जीवाश्म ईंधनों के भंडार तेजी से समाप्त हो रहे हैं, तब नाभिकीय ऊर्जा को एक अत्यंत शक्तिशाली और दीर्घकालिक ऊर्जा स्रोत माना जाता है। यह ऊर्जा परमाणुओं के नाभिक से प्राप्त होती है। नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करने के दो प्रमुख तरीके हैं — नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) और नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

1. नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)

नाभिकीय विखंडन वह प्रक्रिया है जिसमें भारी परमाणु (Heavy Nucleus) जैसे — यूरोनियम (Uranium), प्लूटोनियम (Plutonium) या थोरियम (Thorium) — को निम्न ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन (Low Energy Neutrons) से बमबारी कर विभाजित किया जाता है।

इस विभाजन के दौरान परमाणु दो या अधिक हल्के नाभिकों (Lighter Nuclei) में टूट जाते हैं और साथ ही बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा (Enormous Energy) निकलती है। यही ऊर्जा नाभिकीय विद्युत संयंत्रों में विद्युत उत्पादन (Electricity Generation) के लिए प्रयोग की जाती है।

यह प्रक्रिया पूरी तरह से नियंत्रित परिस्थितियों में नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor) में की जाती है ताकि अधिक ताप और विकिरण से हानि न हो।

✦ नाभिकीय विद्युत संयंत्र (Nuclear Power Plants in India)

भारत ने नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में कई सफल प्रयोग किए हैं और वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में नाभिकीय विद्युत संयंत्र कार्यरत हैं —

क्रमांकनाभिकीय संयंत्रराज्य
1तारापुरमहाराष्ट्र
2राणा प्रताप सागरराजस्थान
3कलपक्कमतमिलनाडु
4नरौराउत्तर प्रदेश
5काकरापारगुजरात
6कैगाकर्नाटक

ये संयंत्र भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

✦ नाभिकीय ऊर्जा के लाभ (Advantages)

  1. उच्च ऊर्जा उत्पादन क्षमता:
    नाभिकीय ईंधन की बहुत ही कम मात्रा से अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, 1 किलोग्राम यूरेनियम से उतनी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है जितनी लगभग 2,500 टन कोयले के जलने से मिलती है।
  2. ग्रीनहाउस गैसों का अभाव:
    नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन के दौरान CO₂ या अन्य ग्रीनहाउस गैसें नहीं निकलतीं, जिससे यह ऊर्जा स्रोत पर्यावरण के अनुकूल (Eco-Friendly) माना जाता है।
  3. ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति:
    यह एक विश्वसनीय और स्थिर ऊर्जा स्रोत है जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता।

✦ नाभिकीय ऊर्जा की हानियाँ (Disadvantages)

  1. उच्च लागत:
    नाभिकीय विद्युत संयंत्रों के निर्माण और रखरखाव में बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
  2. सीमित ईंधन भंडार:
    यूरेनियम और थोरियम जैसे नाभिकीय ईंधनों की उपलब्धता सीमित है।
  3. विकिरण खतरा:
    परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive Waste) का निपटान एक बड़ी समस्या है। यदि इसे सही ढंग से संग्रहित न किया जाए तो यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।
  4. दुर्घटना की संभावना:
    नाभिकीय दुर्घटनाएँ जैसे — चेरनोबिल (1986) और फुकुशिमा (2011) — यह दर्शाती हैं कि छोटी सी लापरवाही भी बड़े पैमाने पर विनाश कर सकती है।

✸ नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

नाभिकीय संलयन वह प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के परमाणु नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक (Heavier Nucleus) बनाते हैं और इसके साथ ही बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है।

उदाहरण के लिए —

2H+2H→3He+n+ऊर्जा

यह वही प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य तारों में होती है। सूर्य से हमें जो प्रकाश और ऊष्मा मिलती है, वह इसी संलयन अभिक्रिया का परिणाम है।

✦ नाभिकीय संलयन की विशेषताएँ

  1. संलयन प्रक्रिया के लिए अत्यधिक ऊर्जा, तापमान (Temperature) और दाब (Pressure) की आवश्यकता होती है — लगभग 10 करोड़ डिग्री तापमान और करोड़ों पास्कल दाब की।
  2. यह प्रक्रिया अभी तक पृथ्वी पर नियंत्रित रूप में पूर्णतः व्यावहारिक नहीं हो सकी है, परंतु वैज्ञानिक इसके उपयोग को सुरक्षित बनाने पर कार्य कर रहे हैं।
  3. यदि भविष्य में इसे नियंत्रित किया जा सका, तो यह सभी ऊर्जा स्रोतों में सबसे शक्तिशाली और स्वच्छ ऊर्जा होगी।

✸ पर्यावरणीय परिणाम (Environmental Impact)

ऊर्जा का अंधाधुंध उपयोग प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, और जलवायु असंतुलन का कारण बन रहा है। अतः हमें ऐसे ऊर्जा स्रोतों का चयन करना चाहिए जो —

  • ऊर्जा निष्कर्षण में सुगम (Easily Accessible) हों।
  • प्रदूषण रहित (Pollution-Free) हों।
  • उपलब्ध तकनीकी क्षमता (Technological Feasibility) के अनुरूप हों।
  • आर्थिक रूप से सस्ते (Economically Viable) हों।

✸ अनवीकरणीय स्रोत (Non-Renewable Sources)

वे ऊर्जा स्रोत जो एक बार प्रयोग के बाद पुनः प्राप्त नहीं किए जा सकते, उन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहा जाता है।
उदाहरण — कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, और यूरेनियम

ये स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और इनके अति-उपयोग से पर्यावरण को भी गंभीर हानि पहुँचती है।

✸ नवीकरणीय स्रोत (Renewable Sources)

वे ऊर्जा स्रोत जो प्राकृतिक रूप से बार-बार उत्पन्न होते रहते हैं और समाप्त नहीं होते, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं।
उदाहरण — सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत, जैव ऊर्जा आदि।

इनका उपयोग सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में एक बड़ा कदम है क्योंकि ये पर्यावरण-सुरक्षित, स्वच्छ और असीमित हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

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