Class 9 Biology Chapter 1 Notes in Hindi – जीवन की मौलिक इकाई (The Fundamental Unit of Life) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल, स्पष्ट और परीक्षा-उपयोगी संपूर्ण नोट्स प्रदान कर रहे हैं। ये नोट्स खास तौर पर CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्य बोर्डों के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए हैं, ताकि वे इस अध्याय की हर अवधारणा को सरल भाषा में समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
इस अध्याय में हमने कोशिका की परिभाषा, प्रकार, संरचना एवं उसके विभिन्न अंगकों (Cell Organelles) जैसे – कोशिका झिल्ली, कोशिका भित्ति, केन्द्रक, माइटोकॉन्ड्रिया, राइबोसोम, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गोल्जी बॉडी, लाइसोसोम, रिक्तिका तथा प्लास्टिड आदि को स्पष्ट व्याख्या और उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाया है।
साथ ही, यहाँ आप सीखेंगे – कोशिका की खोज (Discovery of Cell), कोशिका सिद्धांत (Cell Theory), प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक कोशिकाओं के बीच अंतर, एककोशिकीय और बहुकोशिकीय जीवों की विशेषताएँ, तथा कोशिका के भीतर होने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ भी।
हर विषय को आसान भाषा, तालिकाओं, मुख्य बिंदुओं (Key Points) और परीक्षा-दृष्टि से महत्वपूर्ण व्याख्याओं सहित प्रस्तुत किया गया है, ताकि विद्यार्थी इस अध्याय को बिना किसी कठिनाई के समझ सकें और परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
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Class 9 Biology Chapter 1 Notes in Hindi Overview

| Board | Bihar School Examination Board (BSEB) |
|---|---|
| Textbook | NCERT |
| Class | Class 9th |
| Subject | Science (Biology) |
| Chapter No. | Chapter 1 |
| Chapter Name | जीवन की मौलिक इकाई (The Fundamental Unit of Life) |
| Category | Class 9th Science Notes in Hindi |
| Medium | Hindi |
कोशिका (Cell)
जीवित शरीर की सबसे छोटी रचनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई को कोशिका कहा जाता है (The structural and functional unit of the living body is called a Cell.)। शरीर की संरचना इसलिए कोशिकाओं पर आधारित मानी जाती है क्योंकि अनेक कोशिकाएँ मिलकर ही किसी जीव का निर्माण करती हैं। इसी प्रकार, यह कार्यात्मक इकाई भी है क्योंकि शरीर में होने वाले सभी जीवन-प्रक्रियाएँ कोशिकाओं द्वारा ही नियंत्रित एवं संचालित होती हैं।
कोशिकाओं की रचना के आधार पर इन्हें दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है—
(1) एककोशिकीय जीव (Unicellular Organisms)
जैसे – अमीबा (Amoeba), पैरामीशियम (Paramecium), यूग्लीना (Euglena), क्लेमाइडोमोनस (Chlamydomonas), जीवाणु (Bacteria) आदि।
इन जीवों को एककोशिकीय इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके शरीर में केवल एक ही कोशिका होती है। यही एक कोशिका पूरे जीव के रूप में कार्य करती है और सभी आवश्यक क्रियाएँ—जैसे पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, जनन आदि—इसी अकेली कोशिका द्वारा पूरी की जाती हैं।
(2) बहुकोशिकीय जीव (Multicellular Organisms)
जैसे – कवक (Fungi), पादप (Plants) तथा उच्च श्रेणी के जन्तु।
बहुकोशिकीय जीव एककोशिकीय जीवों से ही क्रमिक विकास के माध्यम से उत्पन्न हुए हैं। इन जीवों में अनेक कोशिकाएँ एक साथ मिलकर ऊतक (Tissues) बनाती हैं, ऊतक मिलकर अंग (Organs) बनाते हैं, और अनेक अंग मिलकर अंग तंत्र (Organ System) का निर्माण करते हैं।
इन जीवों के शरीर में कार्यों का बँटवारा अलग-अलग अंगों के बीच होता है, जिसे शरीर क्रियात्मक श्रम-विभाजन (Physiological Division of Labor) कहा जाता है। यही कारण है कि बहुकोशिकीय जीव एककोशिकीय जीवों की तुलना में अधिक विकसित माने जाते हैं।
कोशिका की खोज (Discovery of Cell)
कोशिका का सर्वप्रथम अवलोकन सन 1665 ई. में अंग्रेज वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने किया था। इसके बाद, 1853 ई. में रॉबर्ट ब्राउन ने कोशिका के भीतर उपस्थित गोलाकार संरचना केन्द्रक (Nucleus) की खोज की।
बाद में वैज्ञानिक दुजरदीन ने कोशिका के भीतर मौजूद जीवित द्रव्य को पहचाना, जिसे पुरकिंजे ने ‘जीवद्रव्य’ नाम दिया। इसी द्रव्य को आज हम कोशिका द्रव्य (Protoplasm) कहते हैं।
कोशिका सिद्धांत (Cell Theory)
जर्मन वैज्ञानिक एम.जे. श्लाइडेन और टी. श्वान ने मिलकर कोशिका से सम्बंधित सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे कोशिका सिद्धांत कहा जाता है। इसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं—
- सभी जीवों की मूल रचनात्मक इकाई कोशिका होती है।
- उपापचयी क्रियाएँ (Metabolic activities) कोशिका के अंदर ही घटित होती हैं।
- आर. वार्शो (1855 ई.) ने स्पष्ट किया कि नई कोशिकाएँ सदैव पूर्व-विद्यमान कोशिकाओं से ही उत्पन्न होती हैं।
- स्ट्रासबर्गर (1864 ई.) ने बताया कि कोशिका का केन्द्रक वंशानुगत लक्षणों का वाहक होता है।
कोशिका के प्रकार (Types of Cells)
कोशिकाएँ सामान्यतः दो प्रकार की होती हैं—
(1) प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell)
वह कोशिका जिसमें केन्द्रक अनुपस्थित होता है तथा संरचना पूर्ण विकसित नहीं होती, प्रोकैरियोटिक कोशिका कहलाती है।
जैसे—अधिकांश सूक्ष्मजीवों की कोशिकाएँ।
इनकी विशेषताएँ—
- आकार में अत्यंत छोटी होती हैं।
- केन्द्रक झिल्ली नहीं पाई जाती।
- केवल एक ही गुणसूत्र (Chromosome) होता है।
- कोशिका के कई अंगक अनुपस्थित रहते हैं।
- विभाजन की प्रक्रिया मुकुलन, विखंडन आदि के द्वारा होती है।
(2) यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell)
जिस कोशिका में सुस्पष्ट केन्द्रक होता है तथा जिसकी संरचना पूर्ण विकसित होती है, उसे यूकैरियोटिक कोशिका कहा जाता है।
जैसे—मनुष्य, पादप एवं अधिकांश जीवों की कोशिकाएँ।
मुख्य विशेषताएँ—
- आकार में अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं।
- केन्द्रक झिल्ली से घिरा होता है।
- गुणसूत्रों की संख्या अधिक होती है।
- लगभग सभी कोशिकांग उपस्थित रहते हैं।
- विभाजन समसूत्रण (Mitosis) या अर्धसूत्रण (Meiosis) द्वारा होता है।
कोशिका की रचना एवं उसके कार्य (Structure of Cell and Its Functions)
कोशिका अनेक सूक्ष्म तत्वों या भागों से मिलकर बनी होती है, जिन्हें कोशिकांग (Cell Organelles) कहा जाता है।
इनके नाम तथा कार्य निम्न प्रकार हैं—
(1) कोशिका झिल्ली (Plasma Membrane)

कोशिका के चारों ओर फैली हुई एक जीवित झिल्ली, जो मुख्यतः प्रोटीन के अणुओं से निर्मित होती है, कोशिका झिल्ली कहलाती है। यह झिल्ली अर्द्ध-पारगम्य (Semi-permeable) होती है, अर्थात् यह केवल चुनिंदा पदार्थों को ही कोशिका के भीतर प्रवेश करने या बाहर निकलने की अनुमति देती है।
इसका प्रमुख कार्य आवश्यक पदार्थ—जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, ऑक्सीजन आदि—को कोशिका में प्रवेश कराना तथा अपशिष्ट और गैसें, विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड, को कोशिका से बाहर जाने देना है।
(2) कोशिका भित्ति (Cell Wall)
पादप कोशिकाओं में पाई जाने वाली कठोर, निर्जीव और पारगम्य परत को कोशिका भित्ति कहते हैं। यह मुख्य रूप से सेल्यूलोज से बनी होती है।
कोशिका भित्ति कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती है तथा बाहरी दबावों से सुरक्षा भी देती है।
(3) कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)
कोशिका झिल्ली के भीतर पाया जाने वाला गाढ़ा, अर्ध-द्रव और पारदर्शी पदार्थ कोशिका द्रव्य कहलाता है।
इसी द्रव्य में कोशिका के सभी अन्य अंगक (Cell Organelles) स्थित रहते हैं, जैसे—
A. केन्द्रक (Nucleus)
कोशिका का सबसे महत्वपूर्ण भाग जो दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है और कोशिका की सभी क्रियाओं का नियंत्रण करता है, केन्द्रक कहलाता है।
केन्द्रक के भीतर एक विशेष द्रव पाया जाता है जिसे केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) कहते हैं। इस द्रव में दो मुख्य रचनाएँ होती हैं—
(a) क्रोमैटिन जाल (Chromatin Network)

यह पतले धागों जैसी संरचना होती है जो DNA तथा हिस्टोन प्रोटीन से मिलकर बनी होती है।
कोशिका विभाजन के समय यही क्रोमैटिन जाल सघन होकर गुणसूत्र (Chromosomes) का रूप ले लेता है।
इन गुणसूत्रों पर छोटे-छोटे कण पाए जाते हैं जिन्हें जीन (Genes) कहते हैं, जो वंशानुगति (Heredity) को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
(b) केन्द्रिका (Nucleolus)
केन्द्रक द्रव्य में स्थित गोलाकार संरचना जिसे केन्द्रिका कहा जाता है, प्रोटीन तथा RNA (Ribonucleic Acid) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
B. अंतःपरद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum – ER)
कोशिका द्रव्य में फैली नलिकाओं और झिल्लियों का जाल, जिसका एक सिरा कोशिका झिल्ली तथा दूसरा सिरा केन्द्रक झिल्ली से जुड़ा होता है, अंतःपरद्रव्यी जालिका (ER) कहलाता है।
ER की सतह पर उपस्थित छोटे दानों जैसी संरचनाएँ राइबोसोम कहलाती हैं, जो प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण होते हैं।
C. रिक्तिका (Vacuoles)
रिक्तिका मुख्यतः पादप कोशिकाओं में पाई जाती हैं और इनके कोशिका द्रव्य का लगभग 50–90% भाग घेर लेती हैं।
इन्हें खनिज लवण, शर्करा, प्रोटीन, अमीनो अम्ल तथा उत्सर्जित पदार्थों को संग्रहित करने के लिए जाना जाता है।
एककोशिकीय जंतुओं में रिक्तिकाएँ जल-संतुलन, उत्सर्जन, तथा भोजन को ग्रहण करने में मदद करती हैं।
D. माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)

कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली बेलनाकार, गोल या धागेनुमा संरचनाएँ माइटोकॉन्ड्रिया कहलाती हैं। यह अंगक दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है।
माइटोकॉन्ड्रिया में DNA, राइबोसोम तथा श्वसन क्रियाओं के लिए आवश्यक विभिन्न एंजाइम उपस्थित होते हैं।
इसी कारण इसे —
- श्वसन का सक्रिय स्थल,
- कोशिका का ऊर्जा गृह (Power House)
कहा जाता है क्योंकि यही कोशिका को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।
E. लवक (Plastid)
पादप कोशिकाओं में पाया जाने वाला वह अंगक जो दोहरी झिल्ली से घिरा होता है, लवक कहलाता है।
लवक मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं—
(a) वर्णीलवक (Chromoplast)
ये लवक पौधों के फूलों और फलों में पाए जाते हैं।
इनकी उपस्थिति के कारण ही फूल और फल विभिन्न आकर्षक रंगों में दिखाई देते हैं।
(b) अवर्णीलवक (Leucoplast)
अवर्णीलवक मुख्यतः पौधों की जड़ों में पाए जाते हैं और इनका प्रमुख कार्य भोजन का संचयन करना होता है।
ये लवक स्टार्च, प्रोटीन तथा वसा जैसी चीज़ों को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
(c) हरित लवक (Chloroplast)
यह लवक पौधों के पत्तों और कोमल तनों में पाया जाता है।
सामान्यत: एक पादप कोशिका में 1 से 80 तक हरित लवक मौजूद हो सकते हैं।
इनमें पर्णहरित (Chlorophyll) नामक हरा वर्णक मौजूद रहता है जो प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को पूरा करने में मदद करता है। इसी कारण हरित लवक को पौधों की रसोई भी कहा जाता है।
हरित लवक की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलने की क्षमता रखता है।
F. गॉल्जिकाय उपकरण (Golgi Apparatus)
कोशिका द्रव्य में मौजूद झिल्लियों, चपटी थैलियों तथा नलिकाओं का समूह गॉल्जिकाय उपकरण कहलाता है। यह संरचना मुख्यतः जंतु कोशिकाओं में पाई जाती है।
पादप कोशिकाओं में इसी तरह की संरचना डिक्टियोसोम के नाम से जानी जाती है।
गॉल्जिकाय उपकरण का मुख्य कार्य—
- कोशिका झिल्ली की मरम्मत करना
- लाइसोसोम का निर्माण
- पादप कोशिका में कोशिका भित्ति के निर्माण में सहायता
G. लाइसोसोम (Lysosome)
लाइसोसोम एक गोल या थैलीनुमा संरचना है जो एक ही झिल्ली से घिरी रहती है और इसके भीतर पाचक एंजाइम भरे होते हैं।
ये एंजाइम बड़े अणुओं को तोड़ने और पचाने में सहायता करते हैं।
लाइसोसोम हानिकारक जीवाणुओं या अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट कर कोशिका की रक्षा भी करता है।
यदि किसी कारण से इसकी झिल्ली फट जाती है, तो इसके भीतर मौजूद एंजाइम कोशिका के सभी भागों को नष्ट कर देते हैं। इसी कारण इसे—
- कोशिका का आत्महत्या थैली,
- विध्वंसकारी दस्ता,
- पाचक थैली भी कहा जाता है।
H. सूक्ष्मनलिकाएं तथा सूक्ष्मतंतु (Microtubules & Microfilaments)
ये तंतु कोशिका द्रव्य में उपस्थित प्रोटीन से बनी लंबी रचनाएँ होती हैं।
इनका प्रमुख कार्य कोशिका के अंदर पदार्थों के परिवहन और गति को नियंत्रित करना है।
I. तारक केंद्र (Centrosome)
यह एक सूक्ष्म गोलाकार संरचना होती है जो केन्द्रक के पास स्थित रहती है।
कोशिका विभाजन के समय यह संरचना दो भागों में विभाजित होकर कोशिका के विपरीत ध्रुवों की ओर चली जाती है और विभाजन प्रक्रिया को सुचारु रूप से पूरा करने में सहायता करती है।
J. कशाभिका और पक्षमाभिका (Flagella & Cilia)
कुछ जंतु कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली के बाहर बालनुमा पतली संरचनाएँ पाई जाती हैं।
इनमें से बाहरी भाग पक्षमाभिका (Cilia) तथा अंदरूनी हिस्सा कशाभिका (Flagella) कहलाता है।
एककोशिकीय जलीय जीवों में ये संरचनाएँ गति के दौरान पतवार (Oar) की तरह काम करती हैं और जीव को आगे बढ़ने में सहायता देती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
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