Class 9 Biology Chapter 2 Notes in Hindi – उत्तक (Tissue) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल, स्पष्ट और परीक्षा-उपयोगी संपूर्ण नोट्स प्रदान कर रहे हैं। ये नोट्स खास तौर पर CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्य बोर्डों के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए हैं, ताकि वे इस अध्याय की हर अवधारणा को आसान भाषा में समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
इस अध्याय में हमने पादप ऊतक और जंतु ऊतक दोनों का विस्तृत अध्ययन किया है। यहाँ आप सीखेंगे – पादप ऊतकों के प्रकार (विभज्योतक एवं स्थायी ऊतक), मृदूतक, स्थूलकोण ऊतक, दृढ़ ऊतक, जटिल ऊतक (जाइलम–फ्लोएम) तथा विशिष्ट ऊतक की संरचना और कार्य। साथ ही, जंतु ऊतकों में एपिथीलियम, संयोजी ऊतक, स्नायु–कण्डरा, कंकाल ऊतक, तरल ऊतक (रक्त व लसीका), पेशीय ऊतक तथा तंत्रिका ऊतक को स्पष्ट व्याख्या और उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाया गया है।
इसके अतिरिक्त आप सीखेंगे – विभज्योतक के प्रकार (शीर्षस्थ, पार्श्व, अंतर्वेशी), स्थायी ऊतक के उपविभाग, जाइलम–फ्लोएम के घटकों का कार्य, अस्थि और उपास्थि की संरचना, RBC–WBC–Platelets के कार्य, तंत्रिका कोशिका की संरचना (साइटन, डेंड्राइट, एक्सॉन, माइलिन शीथ) और पादप तथा जंतु ऊतकों के बीच मुख्य अंतर।
हर विषय को आसान भाषा, तालिकाओं, मुख्य बिंदुओं (Key Points) और परीक्षा-दृष्टि से महत्वपूर्ण व्याख्याओं सहित प्रस्तुत किया गया है, ताकि विद्यार्थी इस अध्याय को बिना किसी कठिनाई के समझ सकें और परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
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Class 9 Biology Chapter 2 Notes in Hindi

ऊतक (Tissue) किसे कहते हैं ?
उत्पत्ति और बनावट (Origin and Structure) के आधार पर समान प्रकृति वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक (Tissue) कहा जाता है। जब एक जैसी कोशिकाएं मिलकर किसी विशेष कार्य को करती हैं, तब वे एक ऊतक का निर्माण करती हैं।
यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—
- पादप ऊतक (Plant Tissues)
- जंतु ऊतक (Animal Tissues)
1. पादप ऊतक (Plant Tissues) किसे कहते हैं ?
पौधों में उपस्थित सभी ऊतकों को पादप ऊतक कहा जाता है। ये ऊतक पौधों के विभिन्न भागों में पाया जाते हैं और इनके वृद्धि, सहारा, जल–परिवहन तथा भोजन–परिवहन जैसी प्रक्रियाओं में सहायता करते हैं।
पादप ऊतक दो मुख्य वर्गों में विभाजित होते हैं—
- विभज्योतक (Meristematic Tissue)
- स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)
1. विभज्योतक (Meristematic Tissue) किसे कहते हैं ?
जो पादप ऊतक पौधों के वृद्धि क्षेत्रों (Growing regions) में पाए जाते हैं और जहाँ लगातार विभाजन के द्वारा वृद्धि और विकास होता है, उसे विभज्योतक कहते हैं। इन कोशिकाओं में सक्रिय विभाजन क्षमता होती है।
विभज्योतक का कार्य
- इस ऊतक की कोशिकाएं लगातार विभाजित होती रहती हैं।
- पौधों की लंबाई तथा मोटाई में वृद्धि करवाती हैं।
- नए अंगों के निर्माण में सहायता करती हैं।
विभज्योतक के प्रकार
विभज्योतक को दो आधारों पर वर्गीकृत किया गया है—
- उत्पत्ति के आधार पर (Based on Origin)
- स्थिति के आधार पर (Based on Position)
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1. उत्पत्ति के आधार पर विभज्योतक के प्रकार
a. प्राथमिक विभज्योतक (Primary Meristematic Tissue)
जो विभज्योतक पौधों के जनन अंगों जैसे—फूल आदि में पाए जाते हैं और जहां प्रारम्भिक वृद्धि होती है, उन्हें प्राथमिक विभज्योतक कहते हैं।
b. द्वितीयक विभज्योतक (Secondary Meristematic Tissue)
जो विभज्योतक पौधों के तनों, जड़ों आदि में उपस्थित होता है तथा पार्श्व दिशा में वृद्धि करवाता है, उसे द्वितीयक विभज्योतक कहा जाता है।
2. स्थिति के आधार पर विभज्योतक के प्रकार
स्थिति के आधार पर विभज्योतक तीन प्रकार के होते हैं—
a. शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical Meristem)
यह पौधों के शीर्ष भाग, जैसे—कोमल पोंगियाँ तथा जड़ों के अग्र भाग में पाया जाता है।
- इसके कारण पौधों की लंबाई में वृद्धि होती है।
b. पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem)
यह विभज्योतक पौधों के तनों और टहनियों में पाया जाता है।
- इसके कारण पौधों की मोटाई (Secondary Growth) में वृद्धि होती है।
c. अंतर्वेशी विभज्योतक (Intercalary Meristem)
यह विभज्योतक पौधों की पत्तियों के वृन्तों, गाठों (Nodes) तथा अंतर–गाठों (Internodes) के पास पाया जाता है।
- इसके कारण नई टहनियों का निर्माण तथा लंबाई में तीव्र वृद्धि होती है।
2. स्थायी ऊतक (Permanent Tissue) किसे कहते हैं ?
वे पादप ऊतक जिनमें कोशिकाओं का विभाजन बंद हो जाता है तथा जिनमें वृद्धि और विकास नहीं होता, उन्हें स्थायी ऊतक कहा जाता है। ये ऊतक पौधों के तनों, पत्तियों, जड़ों तथा अन्य अंगों में पाए जाते हैं और विभिन्न कार्यों के लिए विशेषीकृत होते हैं।
उत्पत्ति और विकास के आधार पर स्थायी ऊतकों के प्रकार
इस आधार पर स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं—
1. प्राथमिक स्थायी ऊतक (Primary Permanent Tissue)
जिस स्थायी ऊतक का निर्माण शीर्षस्थ (Apical) और अंतर्वेशी (Intercalary) विभज्योतक से होता है, उसे प्राथमिक स्थायी ऊतक कहते हैं।
2. द्वितीयक स्थायी ऊतक (Secondary Permanent Tissue)
जिस स्थायी ऊतक का निर्माण पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem) अथवा कैंबियम (Cambium) ऊतक से होता है, उसे द्वितीयक स्थायी ऊतक कहा जाता है।
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अन्य आधार पर स्थायी ऊतकों के तीन प्रकार
उपयुक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त स्थायी ऊतकों को उनकी संरचना के आधार पर निम्न तीन श्रेणियों में भी विभाजित किया जाता है—
- सरल स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue)
- जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue)
- विशिष्ट स्थायी ऊतक (Specialized Permanent Tissue)
1. सरल स्थायी ऊतक किसे कहते हैं ?
सरल स्थायी ऊतक वह ऊतक होता है जिसका निर्माण एक समान प्रकार की स्थायी कोशिकाओं से होता है, जिनकी कोशिका भित्ति की मोटाई निश्चित नहीं होती। इस प्रकार के ऊतकों में सभी कोशिकाओं का कार्य लगभग समान होता है।
सरल स्थायी ऊतक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं—
- मृदूतक (Parenchyma)
- स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma)
- दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma)
मृदूतक किसे कहते हैं ?
पतली कोशिका भित्ति वाली कोशिकाओं के समूह से बना वह स्थायी ऊतक जो पौधों के कोमल भागों में पाया जाता है, मृदूतक (Parenchyma) कहलाता है।
यह मुख्यतः— तना, जड़, पत्ती, फल, बीज के एंडोस्पर्म में पाया जाता है।
यदि मृदूतक की कोशिकाओं में हरित लवक (Chloroplast) उपस्थित हो, तो इसे क्लोरोपारेंकाइमा (Chlorenchyma) कहते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण में मदद करता है।
और जब यह जलीय पौधों में पाया जाए तथा इसकी कोशिकाओं में वायु कोष्ठ (Air cavities) मौजूद हों, तब इसे ऐरेन्काइमा (Aerenchyma) कहते हैं, जो पौधे को तैरने में सहायता प्रदान करता है।
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स्थूलकोण ऊतक किसे कहते हैं ?
जब मृदूतक की कोशिकाओं के कोणीय (कॉर्नर वाले) भागों पर सेल्यूलोज का जमाव (Cellulose deposition) हो जाता है, तो यह रचना स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma) कहलाती है।
यह ऊतक मुख्यतः— पत्तियों के वृन्त (Petiole), तनों की बाह्य त्वचा (Epidermis) के नीचे पाया जाता है।
स्थूलकोण ऊतक पौधों को— लचीलापन (Flexibility), यांत्रिक मजबूती (Mechanical strength) प्रदान करता है, जिससे पौधे हल्की हवा में झुकते तो हैं, लेकिन टूटते नहीं।
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दृढ़ ऊतक किसे कहते हैं ?
लंबी–लंबी कोशिकाओं से बना वह ऊतक, जिसकी बाहरी दीवारें अत्यधिक मोटी और कठोर होती हैं तथा किनारे का भाग अपेक्षाकृत पतला होता है, दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma) कहलाता है।
यह ऊतक पौधों को— कठोरता, मजबूती, लचीलापन प्रदान करता है। यह पौधों के परिपक्व (Mature) भागों में पाया जाता है।
दृढ़ ऊतक दो प्रकार के होते हैं—
- दृढ़ ऊतक तंतु (Fibres)
- स्लेरेड्स या स्टोन सेल्स (Sclereids / Stone Cells)
दृढ़ ऊतक तंतु (Fibres)
दृढ़ ऊतक तंतु एकबीजपत्री (Monocot) पौधों के तनों की बाहरी त्वचा (Epidermis) के नीचे रेशों के रूप में पाए जाते हैं। ये तंतु तने को टूटने से बचाते हैं और उसे अतिरिक्त मजबूती देते हैं।
इसके उदाहरण:
- जूट
- पटसन
- सन (Sunn Hemp)
- फ्लैक्स इत्यादि
स्लेरेड्स या स्टोन सेल्स (Sclereids)
ऐसा दृढ़ ऊतक जो अनियमित आकार वाली कोशिकाओं से बना हो और संबंधित अंगों को अत्यधिक कठोरता प्रदान करे, उसे स्लेरेड्स या स्टोन सेल्स कहते हैं।
उदाहरण—
- मूंगफली का छिलका
- आम की गुठली
- काबुली बादाम का छिलका
इन स्थानों पर कठोरता इन्हीं स्टोन सेल्स के कारण होती है।
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2. जटिल स्थायी ऊतक किसे कहते हैं ?
जो स्थायी ऊतक अनेक प्रकार की जीवित तथा मृत कोशिकाओं के मिलने से बने हों, उन्हें जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue) कहा जाता है।
इन ऊतकों का मुख्य कार्य पौधों में पदार्थों का परिवहन (Conduction) करना है।
पौधों में पाया जाने वाला संवहन ऊतक (Conductive tissue)—
- जाइलम (Xylem)
- फ्लोएम (Phloem)
जटिल स्थायी ऊतक के प्रमुख उदाहरण हैं।
1. जाइलम किसे कहते हैं ?
वैसा संवहन ऊतक जो पौधों की जड़ों से लेकर पत्तियों तक फैला रहता है और जल तथा खनिज लवणों को नीचे से ऊपर की दिशा में पहुँचाता है, जाइलम (Xylem) कहलाता है। यह ऊतक पौधों के प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री—जल एवं खनिज लवण—का परिवहन करता है।
जाइलम ऊतक चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है—
- ट्रैकिड्स (Tracheids)
- जाइलम नलिका (Vessels)
- जाइलम तंतु (Xylem Fibres)
- जाइलम मृदूतक (Xylem Parenchyma)
ट्रैकिड्स
ये मृत कोशिकाओं से बनी लंबी, नलिकाकार (Tubular) संरचनाएँ होती हैं। इनका मुख्य कार्य जल को ऊपर की ओर प्रवाहित करना है। इनकी दीवारें मोटी तथा लिग्निनयुक्त होती हैं।
जाइलम नलिका
ये ट्रैकिड्स से छोटी लेकिन मोटी, पूर्ण रूप से बेलनाकार (Cylindrical) रचना होती हैं। इनके दोनों सिरे खुले रहते हैं, जिससे जल का प्रवाह आसानी से एक नलिका से दूसरी नलिका में होता है। जाइलम नलिकाएँ जल के तीव्र संचरण में सबसे अधिक सक्षम होती हैं।
जाइलम तंतु (Xylem Fibres)
ये दृढ़ ऊतक से बनी तंतुवत (Fibrous) संरचनाएँ होती हैं। इनका मुख्य कार्य पूरी जाइलम प्रणाली को मजबूती व सहारा प्रदान करना है।
जाइलम मृदूतक (Xylem Parenchyma)
यह जीवित कोशिकाओं से बना होता है, जिनकी कोशिका भित्ति पतली होती है। यह जल के संवहन में सहायक होता है तथा उपापचय (Metabolism) से बने भोजन के संग्रह का कार्य करता है।
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2. फ्लोएम किसे कहते हैं ?
फ्लोएम वह संवहन ऊतक है जो पौधों में तैयार भोजन (फोटोसिंथेसिस से बना भोजन) तथा अन्य कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थों का परिवहन करता है। फ्लोएम पदार्थों को ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर, दोनों दिशाओं में ले जाने में सक्षम होता है।
फ्लोएम ऊतक मुख्यतः चार भागों से मिलकर बना होता है—
- चालनी नलिका (Sieve Tube)
- सखी कोशिका (Companion Cell)
- फ्लोएम मृदूतक (Phloem Parenchyma)
- फ्लोएम तंतु (Phloem Fibres)
चालनी नलिका (Sieve Tube)
यह एक लंबी, बेलनाकार नलिका होती है जो ऊपर-नीचे कई कोशिकाओं के क्रमिक जुड़ाव से बनती है। हर चालनी नलिका के सिरे पर छिद्र युक्त प्लेट, जिसे चालनी पट (Sieve Plate) कहते हैं, उपस्थित होती है। इसी के माध्यम से भोजन एक कोशिका से दूसरी कोशिका में संचरित होता है।
सखी कोशिका (Companion Cell)
ये पतली कोशिका भित्ति वाली लंबी मृदूतक कोशिकाएँ होती हैं। सखी कोशिका चालनी नलिका के साथ जुड़ी रहती है और इसके भोजन परिवहन को नियंत्रित करने में सहायता करती है। यह ऊर्जा (ATP) उपलब्ध कराकर चालनी नलिकाओं के सुचारू कार्य में मदद करती है।
फ्लोएम मृदूतक (Phloem Parenchyma)
यह पतली कोशिका भित्ति वाले मृदूतक कोशिकाओं से बना होता है। यह चालनी नलिकाओं से जुड़कर भोजन के परिवहन तथा भोजन के संग्रह में सहायक होता है।
फ्लोएम तंतु (Phloem Fibres)
ये दृढ़ ऊतक तंतुओं से मिलकर बनते हैं। ये फ्लोएम को मजबूती, संरक्षण और सहारा प्रदान करते हैं। फ्लोएम के केवल यही तंतु मृत होते हैं, बाकी सभी भाग जीवित रहते हैं।
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3. विशिष्ट स्थायी ऊतक किसे कहते हैं ?
कुछ पौधों में ऐसे ऊतक पाए जाते हैं जो विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थों का स्राव (Secretions) करते हैं। ऐसे ऊतकों को विशिष्ट स्थायी ऊतक (Specialized Permanent Tissues) कहा जाता है।
ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—
- लेटीसिफ़ेरस ऊतक (Laticiferous Tissue)
- ग्रंथिल ऊतक (Glandular Tissue)
i. लेटीसिफ़ेरस ऊतक
रबड़ जैसे पौधों (उदा.– रबर प्लांट) में उजले रंग का गाढ़ा द्रव्य, जिसे लेटेक्स (Latex) कहते हैं, बनता है। लेटेक्स का स्राव करने वाले ऊतकों को लेटीसिफ़ेरस ऊतक कहा जाता है। यह पौधों में सुरक्षा तथा घाव भरने जैसी प्रक्रियाओं में भी सहायक होता है।
ii. ग्रंथिल ऊतक (Glandular Tissue)
वे पौधों के ऊतक जो तेल, रेजिन, सुगंधित द्रव्य (Essential Oils) या अन्य विशेष प्रकार के स्राव बनाते हैं, ग्रंथिल ऊतक कहलाते हैं। ये ऊतक पत्तियों, तनों या फूलों में पाए जा सकते हैं और पौधों में रक्षा व आकर्षण (परागण) में सहायता करते हैं।
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2. जंतु ऊतक (Animal Tissues) किसे कहते हैं ?
जंतुओं में एक समान प्रकार की कोशिकाओं के समूह से बने ऊतकों को जंतु ऊतक (Animal Tissues) कहा जाता है।
ये ऊतक शरीर में संरक्षण, संचरण, नियंत्रण, गति, स्राव, अवशोषण जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
जंतु ऊतक मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं—
- एपिथीलियम ऊतक (Epithelial Tissue)
- संयोजी ऊतक (Connective Tissue)
- पेशीय ऊतक (Muscular Tissue)
- तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue)
1. एपिथीलियम ऊतक किसे कहते हैं ?
जो जंतु ऊतक शरीर के बाहरी तथा आंतरिक अंगों की रक्षा करने के लिए एक सुरक्षात्मक आवरण (Protective covering) बनाते हैं, उन्हें एपिथीलियम ऊतक कहते हैं।
यह आहार नाल, फेफड़ों, हृदय, मुख–गुहा तथा विभिन्न नलिकाओं की भीतरी सतह पर पाया जाता है।
एपिथीलियम ऊतक के कार्य
- यह ऊतक शरीर को जीवाणुओं, रासायनिक पदार्थों, विकिरणों तथा अन्य हानिकारक पदार्थों से बचाता है।
- एपिथीलियम ऊतक में उपस्थित ग्रंथियां पाचक रस, दूध आदि विशिष्ट पदार्थों का स्राव करती हैं।
- यह ऊतक उत्सर्जन नलिकाओं में पाया जाता है और उत्सर्जन क्रिया को संभव बनाता है।
- इसकी कोशिकाएं तंत्रिका आवेगों को ग्रहण कर सकती हैं, जिससे संवेदना प्राप्त होती है।
- जननांगों में उपस्थित कुछ एपिथीलियम ऊतक युग्मक निर्माण में सहायता करते हैं।
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एपिथीलियम ऊतक के प्रकार
एपिथीलियम ऊतक मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं—
A. शल्की एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह ऊतक चपटी, प्लेट जैसी, षट्भुजी कोशिकाओं से बना होता है। यह फेफड़ों की आंतरिक दीवारों, वृक्क नलिकाओं के बोमैन कैप्सूल, आंतरिक कान की झिल्ली, रक्त वाहिनियों की भीतरी दीवारों तथा मुख गुहा में पाया जाता है।
कार्य –
- यह आंतरिक अंगों को सुरक्षा देता है।
- विसरण (Diffusion) क्रिया में सहायता करता है।
B. घनाकार एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह ऊतक घनाकार कोशिकाओं से बना होता है। यह मुख्य रूप से गुर्दे और लार ग्रंथियों में पाया जाता है।
कार्य –
- पदार्थों का स्राव (Secretion)
- पदार्थों का अवशोषण (Absorption)
- संबंधित अंगों को सहारा (Support) प्रदान करना
C. स्तम्भी एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह ऊतक लंबी, खंभे जैसी (Column-like) कोशिकाओं से बना होता है। यह छोटी आंत की आंतरिक दीवार पर पाया जाता है, जहाँ कोशिकाओं की ऊपरी सतह पर माइक्रोविल्ली होती है। इसके अतिरिक्त यह गला, आमाशय, आंत तथा मादा प्राणियों की अंडवाहिनियों में भी पाया जाता है।
D. पक्षमल एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह ऊतक घनाकार और स्तंभाकार एपिथीलियम के रूपांतरण से बनता है। इसकी कोशिकाओं पर पक्ष्म (Cilia) पाए जाते हैं, जो पदार्थों को एक दिशा में ले जाने में सहायता करते हैं। यह नाक की आंतरिक दीवारों, ट्रेकिया (श्वासनली), अंडवाहिनी तथा मेंढक के मुख गुहा में पाया जाता है।
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E. ग्रंथिल एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह स्तंभाकार एपिथीलियम का रूपांतरित रूप है, जो विशिष्ट रासायनिक पदार्थों का स्राव करता है।
इसके उदाहरण हैं—
- सफेद ग्रंथि
- सिबेसियस (Sebaceous) ग्रंथि
- लार ग्रंथि
F. संवेदी एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह भी स्तंभाकार एपिथीलियम का ही परिवर्तित रूप है। यह ऊतक संवेदी कोशिकाओं में पाया जाता है।
उदाहरण—
- जीभ की स्वाद कलिकाएँ
- कान की आंतरिक झिल्ली
- नाक की घ्राण कलिकाएँ (Olfactory Lobes)
G. स्तरित एपिथीलियम किसे कहते हैं ?
यह ऊतक कोशिकाओं की कई परतों से मिलकर बना होता है। यह मुख्य रूप से त्वचा में पाया जाता है और शरीर को घर्षण, चोट तथा संक्रमणों से बचाता है।
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2. संयोजी ऊतक किसे कहते हैं ?
वैसा जंतु ऊतक जो जीव–शरीर के विभिन्न अंगों, ऊतकों और संरचनाओं को जोड़ने, सहारा देने और उन्हें सुरक्षित रखने का कार्य करता है, संयोजी ऊतक (Connective Tissue) कहलाता है।
इस ऊतक के बीच मैट्रिक्स अधिक मात्रा में होता है, जो इसे मजबूती और लचीलापन प्रदान करता है।
संयोजी ऊतक के कार्य
- यह शरीर के अंगों और शारीरिक संरचनाओं को जोड़ता है।
- यह अंगों तथा अन्य ऊतकों के चारों ओर रक्षात्मक आवरण बनाता है।
- यह ऊतक शरीर को सूक्ष्मजीवों के संक्रमण से बचाता है।
- यह घायल तथा अनावश्यक ऊतकों को हटाने में सहायता करता है।
- यह शरीर में कंकाल की रचना करता है और शरीर को आकार देता है।
संयोजी ऊतक के प्रकार
संयोजी ऊतक मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं—
A. वास्तविक संयोजी ऊतक
B. कंकाल ऊतक
C. द्रव संयोजी ऊतक
D. विशेष संयोजी ऊतक
A. वास्तविक संयोजी ऊतक (Areolar/True Connective Tissue)
इसे पाँच भागों में बाँटा गया है—
a. अंतरालीय संयोजी ऊतक किसे कहते हैं ?
यह वास्तविक संयोजी ऊतक शरीर के अधिकांश भागों में पाया जाता है। इसमें चार प्रकार की कोशिकाएँ— फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ, मैक्रोफेज, मास्ट कोशिकाएँ, लिम्फ कोशिकाएँ और दो प्रकार के तंतु— कोलेजन तंतु, इलास्टिन तंतु पाए जाते हैं। यह ऊतक अंगों को ढकने, सहारा देने और उन्हें जगह पर बनाए रखने में मदद करता है।
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b. पीत लचीले ऊतक किसे कहते हैं ?
यह वास्तविक संयोजी ऊतक पीले एवं अत्यंत लचीले तंतुओं से बना होता है।
यह मुख्यतः— धमनियों की दीवारों, ब्रांकिओल्स, कंकाल के पास में पाया जाता है।
इसका मुख्य कार्य त्वचा को उसके नीचे स्थित मांसपेशियों से जोड़ना तथा लचीलापन प्रदान करना है।
c. श्वेत तंतुवत ऊतक किसे कहते हैं ?
यह कोलेजन तंतुओं के सघन समूह से बनता है।
इसका मुख्य कार्य— मांसपेशियों को हड्डियों से मजबूती से जोड़ना है।
यह ऊतक— रीढ़ रज्जु (Spinal cord), मस्तिष्क की ड्यूरा मैटर परत में भी पाया जाता है।
d. एडिपोज या वसीय ऊतक किसे कहते हैं ?
यह शरीर के गहरे भागों, अस्थि मज्जा और आंतरिक अंगों के आसपास पाया जाता है। इसमें मौजूद वसा कण (Fat globules) शरीर को— ठंड से बचाते हैं, ऊर्जा का भंडार बनाते हैं, आंतरिक अंगों को गद्दी प्रदान करते हैं |
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e. जलावत ऊतक किसे कहते हैं ?
यह वास्तविक संयोजी ऊतक तारों जैसे आकार वाली कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।
इन कोशिकाओं के कोनों से जीवद्रव्य के प्रवर्ध (Processes) निकलकर जाल (Network) बनाते हैं।
यह ऊतक— प्लीहा (Spleen), अस्थि मज्जा, यकृत (Liver) में पाया जाता है और सहारा व रक्षा का कार्य करता है।
B. कंकाल ऊतक किसे कहते हैं ?
वह संयोजी ऊतक जो शरीर को एक निश्चित आकृति और संरचना प्रदान करता है, कंकाल ऊतक (Skeletal Tissue) कहलाता है। यह ऊतक शरीर को सहारा देता है और गति में मदद करता है।
कंकाल ऊतक के कार्य
- शरीर को निश्चित आकार और संरचना देता है।
- शरीर के कोमल अंगों जैसे—मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े—को सुरक्षित रखता है।
- शरीर की गति (Movement) में सहायता करता है।
कंकाल ऊतक के प्रकार
कंकाल ऊतक दो प्रकार के होते हैं—
- अस्थि (Bone)
- उपास्थि (Cartilage)
अस्थि किसे कहते हैं ?
अस्थि अपेक्षाकृत अत्यधिक कठोर और मजबूत होती है। इसकी कठोरता का कारण इसमें उपस्थित—कैल्शियम, मैग्नीशियम के लवण हैं। अस्थि अपारगम्य होती है और इसके मैट्रिक्स में अकार्बनिक लवण पाए जाते हैं। इसमें उपस्थित ऑस्टियोसाइट कोशिकाएँ एकल अवस्था में रहती हैं।
अस्थि में— कैनालिकुली नामक पतली नलिकाएँ, आंतरिक गुहा में उपस्थित अस्थि–मज्जा, जिसमें वसा व रक्त–कोशिकाएँ होती हैं, पाई जाती हैं।
उपास्थि किसे कहते हैं ?
उपास्थि अस्थि की तुलना में मुलायम और अधिक लचीला होता है। यह— हड्डियों के जोड़, नाक, कान, ट्रेकिया में पाया जाता है। इसके मैट्रिक्स में कॉनड्रिन (Chondrin) नामक विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है। यह पोषक पदार्थों तथा ऑक्सीजन के लिए पारगम्य होता है। इसमें कंड्रोसाइट्स कोशिकाएँ समूहों में पाई जाती हैं। उपास्थि में रक्त की आपूर्ति नहीं होती, इसलिए यह धीरे-धीरे ठीक होता है।
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C. स्नायु और कण्डरा किसे कहते हैं ?
यह एक तंतुवत संयोजी ऊतक है, जो अत्यंत लचीला तथा मजबूत होता है।
- स्नायु (Ligament) एक हड्डी को दूसरी हड्डी से जोड़ता
- कण्डरा (Tendon) मांसपेशियों को हड्डियों से जोड़ने का कार्य करता है।
दोनों ही ऊतक शरीर में गति और स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
D. तरल संयोजी ऊतक किसे कहते हैं ?
इस ऊतक को परिवहन ऊतक (Transport Tissue) भी कहा जाता है, क्योंकि यह शरीर में— ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक पदार्थ, विटामिन, हार्मोन आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है। रक्त और लसीका (Lymph) मिलकर तरल संयोजी ऊतक बनाते हैं।
रक्त क्या है ?
जो तरल संयोजी ऊतक प्लाज्मा तथा रक्त–कोशिकाओं से मिलकर बनता है, वह रक्त (Blood) कहलाता है।
रक्त में तीन प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं—
1. लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell / RBC / Erythrocyte)
- यह पीले रंग की कोशिकाएँ होती हैं, जो हीमोग्लोबिन रंजक के कारण लाल दिखाई देती हैं।
- इसका मुख्य कार्य ऑक्सीजन, पोषक पदार्थ, विटामिन, हार्मोन, और कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन करना है।
- इसे एरिथ्रोसाइट भी कहते हैं।
2. श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell / WBC / Leukocyte)
- यह रंगहीन तथा अनियमित आकार की कोशिकाएँ होती हैं।
- इसका मुख्य कार्य शरीर को जीवाणुओं और संक्रामक रोगों से बचाना है।
- इसे ल्यूकोसाइट भी कहा जाता है।
3. बिम्बाणु (Platelets / Thrombocyte)
- ये रक्त में तुर्क (Disc-like) रूप में पाए जाते हैं और इनकी संख्या बहुत कम होती है।
- इनका मुख्य कार्य रक्त का थक्का जमाना (Blood Clotting) है।
- इनकी कमी होने पर घाव का रक्त रुक नहीं पाता।
- इसका दूसरा नाम थ्रोम्बोसाइट है।
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लसीका या लिम्फ किसे कहते हैं ?
यह रंगहीन तरल संयोजी ऊतक है, जिसमें— प्रोटीन, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लिंफोसाइट, फागोसाइट जैसी कोशिकाएँ पाई जाती हैं। लसीका पूरे शरीर में एक विशेष तंत्र द्वारा प्रवाहित होती है जिसे लसीका तंत्र (Lymphatic System) कहते हैं।
लसीका के कार्य
- शरीर में विभिन्न पदार्थों के परिवहन में सहायक।
- वसा के परिवहन में मदद करता है।
- शरीर को संक्रामक रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।
3. पेशीय ऊतक किसे कहते हैं ?
जंतु ऊतक जिनमें संकुचनशील रेशे पाए जाते हैं और जिनमें मैट्रिक्स अनुपस्थित रहता है, उन्हें पेशीय ऊतक (Muscular Tissue) कहा जाता है। इन रेशों में उपस्थित संकुचनशील जीवद्रव्य को सार्कोप्लाज्म (Sarcoplasm) कहते हैं, जो एक झिल्ली से घिरा रहता है जिसे सरकोलिमा (Sarcolemma) कहते हैं।
कार्य के आधार पर पेशीय ऊतक के प्रकार
1. ऐच्छिक पेशी
जिन पेशियों के कार्य पर मस्तिष्क का नियंत्रण होता है, उन्हें ऐच्छिक पेशी कहते हैं।
उदाहरण—हाथ और पैर की पेशियाँ।
2. अनैच्छिक पेशी
जिन पेशियों पर मस्तिष्क का नियंत्रण नहीं होता, वे अनैच्छिक पेशी कहलाती हैं।
उदाहरण—हृदय की पेशियाँ, फेफड़ों की पेशियाँ।
Class 9 Biology Chapter 2 Notes in Hindi
संरचना के आधार पर पेशीय ऊतकों के प्रकार
1. कंकाल पेशी या रेखित पेशी (Striated/Skeletal Muscles)
- यह पेशियाँ बंडलों के रूप में लंबी और बेलनाकार कोशिकाओं से बनी होती हैं।
- इनमें सरकोलिमा पाई जाती है।
- कोशिकाओं में अनेक केंद्रक पाए जाते हैं, जो परिधि की ओर स्थित होते हैं।
- यह ऐच्छिक पेशियाँ हैं — हाथों और पैरों में पाई जाती हैं।
- यह शीघ्र थक जाती हैं।
2. आरेखित पेशी (Smooth/Unstriated Muscles)
- यह पेशियाँ तंतु जैसी लम्बी कोशिकाओं से बनी होती हैं।
- इनमें सरकोलिमा अनुपस्थित होता है।
- इनकी कोशिकाओं में एक केंद्रक पाया जाता है, जो मध्य में स्थित होता है।
- यह अनैच्छिक पेशियाँ हैं और कभी थकती नहीं।
- यह पाचन नली, रक्त–वाहिनियों और मूत्राशय में पाई जाती हैं।
3. हृदय की पेशी (Cardiac Muscles)
- यह पेशियाँ रेखित भी होती हैं, पर अनैच्छिक होती हैं।
- इनका कार्य निरंतर चलता है और ये कभी थकती नहीं।
- इन पेशियों में सरकोलिमा भी पाया जाता है।
- ये केवल हृदय में पाई जाती हैं।
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4. तंत्रिका ऊतक किसे कहते हैं ?
तंत्रिका ऊतक वह ऊतक है जिसका निर्माण तंत्रिका कोशिकाओं (Neuron) से होता है। ये कोशिकाएँ शरीर में तंत्रिका आवेगों (Nerve Impulses) को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का कार्य करती हैं।
एक न्यूरॉन (तंत्रिका कोशिका) निम्नलिखित प्रमुख भागों से मिलकर बना होता है—
साइटन (Cyton / Cell Body)
यह एक तारे जैसी संरचना होती है। इसके मध्य में एक बड़ा और स्पष्ट केन्द्रक (Nucleus) पाया जाता है। इसी भाग में कोशिका–द्रव्य (Cytoplasm) और अन्य कोशिकांग उपस्थित होते हैं।
डेंड्रॉन (Dendron)
साइटन के बाहरी हिस्से से कई भुजा–नुमा प्रवर्ध (Processes) निकलते हैं, जिन्हें डेंड्रॉन कहते हैं। ये अन्य तंत्रिकाओं से संकेत (Signal) ग्रहण करने में मदद करते हैं।
डेंड्राइट (Dendrite)
डेंड्रॉन से निकलने वाली और भी पतली, शाखित रेखाकार संरचनाएँ डेंड्राइट कहलाती हैं। ये तंत्रिका आवेगों को साइटन तक पहुँचाने का कार्य करती हैं।
एक्सॉन (Axon)
साइटन से एक लंबा प्रवर्ध निकलता है जिसे तंत्रिकाक्ष या एक्सॉन कहते हैं। एक्सॉन तंत्रिका आवेगों को साइटन से दूर, अन्य न्यूरॉन, पेशी या ग्रंथि तक पहुँचाता है।
सिनेप्स (Synapse)
दो तंत्रिका कोशिकाओं के डेंड्राइट्स या एक्सॉन के संपर्क–बिंदु को सिनेप्स कहते हैं। यही वह स्थान है जहाँ एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक आवेग (Impulse) पहुँचता है।
माइलिन शीथ (Myelin Sheath)
एक्सॉन के चारों ओर दोहरी झिल्ली से घिरी कोशिकाओं की परत पाई जाती है, जिसे माइलिन शीथ कहते हैं।
यह एक्सॉन की रक्षा करती है और तंत्रिका आवेगों की गति को बढ़ाती है।
माइलिन शीथ पर कुछ स्थान खुले रहते हैं, जिन्हें रैन–वीयर नोड (Nodes of Ranvier) कहा जाता है।
यह आवेग के तीव्र संचार (Fast Conduction) में सहायक होते हैं।
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तंत्रिका कोशिका के प्रकार
तंत्रिका कोशिकाएँ मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं—
1. संवेदी या अभिवाही तंत्रिका कोशिका (Sensory / Afferent Neuron)
ये तंत्रिका कोशिकाएँ संवेदी अंगों (Skin, Tongue, Eyes आदि) को मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु से जोड़ने का कार्य करती हैं। इनका काम संवेदना को मस्तिष्क तक पहुँचाना है।
2. प्रेरक या अपवाही तंत्रिका कोशिका (Motor / Efferent Neuron)
ये तंत्रिका कोशिकाएँ मस्तिष्क या मेरुरज्जु से प्राप्त आदेशों (Impulses) को पेशीय ऊतक या ग्रंथियों तक पहुँचाती हैं। इन्हीं के कारण मांसपेशियाँ सिकुड़ती, फैलती या कार्य करती हैं।
3. संयोजक तंत्रिका कोशिका (Association / Interneuron)
ये तंत्रिका कोशिकाएँ केवल मस्तिष्क और मेरुरज्जु में पाई जाती हैं। इनका मुख्य कार्य— संवेदी तंत्रिका कोशिका
और प्रेरक तंत्रिका कोशिका को आपस में जोड़ना है। इन्हें नाड़ी तंत्र का “लिंक” या “संचार–संचालक” भी कहा जाता है।
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निष्कर्ष (Conclusion):
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