Class 10th Physics Chapter 4 Notes in Hindi – विद्युत् धारा के चुंबकीय प्रभाव (Magnetic Effect of Electric Current) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल, स्पष्ट और परीक्षा-उपयोगी संपूर्ण नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं।
यह नोट्स विशेष रूप से CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्य बोर्डों के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए हैं, ताकि वे इस अध्याय के प्रत्येक सिद्धांत को आसानी से समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त कर सकें।
इस अध्याय में हमने धारावाही वृताकार तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ, परिनालिका (Solenoid), विद्युत्-चुंबक (Electromagnet), धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव, फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम (Fleming’s Left Hand Rule), विधुत मोटर (Electric Motor), विधुत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction), फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम (Fleming’s Right Hand Rule), विधुत जनित्र (Electric Generator), घरेलू विद्युत् आपूर्ति, अतिभारण (Overloading), लघुपथन (Short Circuiting) और फ्यूज (Fuse) जैसे सभी महत्वपूर्ण विषयों को विस्तारपूर्वक और बोर्ड पैटर्न के अनुसार समझाया है।
साथ ही, इस अध्याय में घरेलू वायरिंग की संरचना, MCB जैसी सुरक्षा युक्तियाँ, तथा विद्युत उपयोग से संबंधित सावधानियाँ जैसे व्यावहारिक विषयों को भी सरल उदाहरणों और स्पष्ट व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया गया है।
हर विषय को परिभाषाओं, चित्रों, सूत्रों और मुख्य बिंदुओं के माध्यम से इस प्रकार समझाया गया है कि विद्यार्थी इसे आसानी से याद रख सकें और परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
अगर आप Class 10th Physics Chapter 4 – Magnetic Effect of Electric Current (विद्युत् धारा के चुंबकीय प्रभाव) को एकदम आसान भाषा में समझना चाहते हैं और बोर्ड परीक्षा में शानदार प्रदर्शन करना चाहते हैं, तो यह फ्री हिंदी नोट्स और PDF डाउनलोड आपके लिए बिल्कुल उपयुक्त है।
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Class 10th Physics Chapter 4 Notes in Hindi
✸ चुंबक (Magnet)
वह पदार्थ जो लोहे या लोहे से बने पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करता है, उसे चुंबक (Magnet) कहा जाता है। चुंबक प्राकृतिक (Natural Magnet) या कृत्रिम (Artificial Magnet) दोनों प्रकार के हो सकते हैं। प्राकृतिक चुंबक, जैसे– मैग्नेटाइट (Magnetite), पृथ्वी में पाया जाता है, जबकि कृत्रिम चुंबक लोहे या इस्पात से बनाए जाते हैं।
➤ चुंबक के सिरे पर स्थित वह बिंदु, जहाँ आकर्षण बल सबसे अधिक होता है, ध्रुव (Pole) कहलाता है। प्रत्येक चुंबक के दो ध्रुव होते हैं — उत्तर ध्रुव (North Pole) और दक्षिण ध्रुव (South Pole)।
➤ जब किसी चुंबक को स्वतंत्र रूप से लटकाया जाता है, तो उसका एक सिरा सदैव उत्तर दिशा (North Direction) की ओर तथा दूसरा सिरा दक्षिण दिशा (South Direction) की ओर इंगित करता है।
➤ जो सिरा उत्तर दिशा की ओर संकेत करता है उसे उत्तर ध्रुव (North Pole) तथा जो सिरा दक्षिण दिशा की ओर होता है उसे दक्षिण ध्रुव (South Pole) कहा जाता है।
➤ चुंबक के दोनों ध्रुवों को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा को चुंबकीय अक्ष (Magnetic Axis) कहा जाता है।
➤ समान प्रकार के चुंबकीय ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित (Repel) करते हैं जबकि असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित (Attract) करते हैं।
✸ चुंबकीय पदार्थ (Magnetic Substances)
वे पदार्थ जिन्हें चुंबक अपनी ओर खींचता है, चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण – लोहा (Iron), कोबाल्ट (Cobalt), निकेल (Nickel) तथा इनके मिश्रधातु (Alloys) जैसे – स्टील आदि।
ये पदार्थ चुंबकीय बल के प्रभाव में चुंबकित हो सकते हैं।
✸ अचुंबकीय पदार्थ (Non-Magnetic Substances)
वे पदार्थ जिन्हें चुंबक आकर्षित नहीं करता, अचुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं।
उदाहरण – काँच (Glass), कागज (Paper), लकड़ी (Wood), प्लास्टिक (Plastic), पीतल (Brass) आदि।
✸ चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field)
वह क्षेत्र जिसमें किसी चुंबक के प्रभाव से रखी गई चुंबकीय सुई (Magnetic Needle) एक निश्चित दिशा में स्थिर हो जाती है, उसे चुंबकीय क्षेत्र कहा जाता है।
➤ चुंबकीय क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं (Magnetic Field Lines) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
✦ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण (Properties of Magnetic Field Lines)
- किसी चुंबक के चारों ओर क्षेत्र-रेखाएँ बंद वक्र (Closed Curves) बनाती हैं जो उत्तर ध्रुव से निकलकर दक्षिण ध्रुव में प्रवेश करती हैं और फिर चुंबक के अंदर से होकर पुनः उत्तर ध्रुव पर लौट आती हैं।
- ध्रुवों के समीप क्षेत्र-रेखाएँ अधिक घनी (Dense) होती हैं, जिससे चुंबकीय बल अधिक होता है। जैसे-जैसे ध्रुवों से दूरी बढ़ती है, रेखाओं का घनत्व घटता जाता है, जिससे चुंबकीय प्रभाव कम हो जाता है।
- किसी भी बिंदु पर खींची गई स्पर्शरेखा (Tangent) उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा (Direction) बताती है।
- जहाँ क्षेत्र-रेखाएँ आपस में निकट होती हैं, वहाँ चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता (Strength) अधिक होती है।
- दो चुंबकीय क्षेत्र-रेखाएँ कभी एक-दूसरे को नहीं काटती, क्योंकि किसी बिंदु पर क्षेत्र की केवल एक ही दिशा हो सकती है।
✸ विद्युत धारा से चुंबकीय क्षेत्र का उत्पन्न होना (Magnetic Field due to Electric Current)
1820 में डेनिश वैज्ञानिक हैंस क्रिश्चियन ओर्स्टेड (Hans Christian Ørsted) ने अपने प्रसिद्ध प्रयोग से यह खोज की कि जब किसी चालक (Conductor) में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उस चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) उत्पन्न होता है।
इससे यह सिद्ध हुआ कि विद्युत धारा और चुंबकत्व आपस में संबंधित घटनाएँ हैं।
✸ मैक्सवेल का दक्षिण–हस्त नियम (Maxwell’s Right-Hand Rule)
यदि किसी धारावाही चालक (Current-Carrying Conductor) को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए कि अंगूठा (Thumb) विद्युत धारा की दिशा दर्शाए, तो बाकी मुड़ी हुई उंगलियाँ (Curved Fingers) चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाती हैं।
यह नियम चुंबकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

✸ धारावाही वृत्ताकार तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ (Magnetic Field Lines due to Current-Carrying Circular Loop)
यदि ताँबे के मोटे तार को वृत्ताकार (Circular) रूप में मोड़कर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित की जाए, तो उसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ बनती हैं।
इन चुंबकीय रेखाओं का स्वरूप बार चुंबक (Bar Magnet) के समान होता है।

➤ वृत्ताकार तार के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा वृत्त के तल के लम्बवत (Perpendicular to Plane of the Loop) होती है।
➤ यदि धारा की दिशा बदल दी जाए, तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा भी बदल जाती है।
यह प्रयोग यह सिद्ध करता है कि विद्युत धारा से चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
✸ परिनालिका (Solenoid)
जब किसी लंबे, विद्युतरोधक तार (Insulated Copper Wire) को सर्पिल या कुंडलीनुमा रूप (Helical Form) में इस प्रकार लपेटा जाता है कि तार के सभी फेरे (Turns) एक-दूसरे से अलग लेकिन बहुत समीप हों, तो ऐसी व्यवस्था को परिनालिका (Solenoid) कहा जाता है।
➤ जिस पदार्थ के ऊपर परिनालिका लपेटी जाती है, उसे क्रोड (Core) कहा जाता है।
आमतौर पर यह नरम लोहे (Soft Iron) का बना होता है ताकि उसमें चुंबकत्व आसानी से उत्पन्न और समाप्त हो सके।
परिनालिका के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और स्वरूप भी बार चुंबक के समान होती है — जिसमें एक सिरा उत्तर ध्रुव और दूसरा दक्षिण ध्रुव के रूप में कार्य करता है।
✸ विद्युत्-चुंबक (Electromagnet)
विद्युत्-चुंबक वह चुंबक है जिसमें चुंबकत्व केवल विद्युत धारा के प्रवाह के दौरान ही बना रहता है।
जब परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके भीतर रखे नरम लोहे के छड़ (Soft Iron Rod) में चुंबकत्व उत्पन्न हो जाता है।
➤ जैसे ही धारा का प्रवाह बंद किया जाता है, चुंबकत्व समाप्त हो जाता है।

विद्युत्-चुंबक का उपयोग विद्युत घंटी (Electric Bell), विद्युत क्रेन (Electric Crane), टेलीफोन, माइक्रोफोन, टेलीविजन आदि में किया जाता है।
✦ चुंबकत्व की तीव्रता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Strength of Electromagnet)
- परिनालिका में फेरों की संख्या (Number of Turns):
यदि तार के फेरे अधिक होंगे तो चुंबकीय क्षेत्र उतना ही प्रबल होगा। - विद्युत धारा की मात्रा (Amount of Current):
जितनी अधिक विद्युत धारा प्रवाहित की जाएगी, चुंबकत्व की तीव्रता उतनी ही बढ़ेगी। - क्रोड के पदार्थ की प्रकृति (Nature of Core Material):
यदि परिनालिका के अंदर नरम लोहे का क्रोड उपयोग किया जाए तो चुंबकत्व अधिक होता है।
कठोर इस्पात (Hard Steel) का प्रयोग करने पर चुंबकत्व स्थायी रहता है लेकिन कमजोर होता है।
✸ धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव (Effect of Magnetic Field on Current-Carrying Conductor)
- जब किसी धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उस पर एक बल (Force) कार्य करता है।
- इस बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा (Direction of Current) और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of Magnetic Field) – दोनों पर निर्भर करती है।
यह प्रभाव विद्युत मोटर (Electric Motor) के कार्य सिद्धांत का आधार है।
✸ फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम (Fleming’s Left-Hand Rule)
यदि हम अपने बाएँ हाथ की तीन उँगलियों — तर्जनी (Forefinger), मध्यमा (Middle Finger) और अंगूठा (Thumb) — को परस्पर लंबवत (Mutually Perpendicular) फैलाएँ,
- तर्जनी (Forefinger) चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाए,
- मध्यमा (Middle Finger) धारा की दिशा बताए,
तो अंगूठा (Thumb) उस बल की दिशा (Direction of Force) दर्शाता है जो चालक पर कार्य करता है।

यह नियम किसी धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र द्वारा लगाए गए बल की दिशा ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
✸ विद्युत मोटर (Electric Motor)
विद्युत मोटर एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) को यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) में परिवर्तित करता है। इसका उपयोग पंखों, मिक्सर, पंप, ड्रिल मशीन आदि में किया जाता है।
विद्युत मोटर में एक शक्तिशाली स्थायी चुंबक (Permanent Magnet) होता है जिसके अवतल ध्रुव खंडों के बीच ताँबे के तार की कुंडली (Copper Coil) स्थित होती है, जिसे आर्मेचर (Armature) कहा जाता है।

➤ आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलय (Split Rings) R₁ और R₂ से जुड़े होते हैं। इन वलयों पर दो कार्बन ब्रश (Carbon Brushes) B₁ और B₂ स्पर्श करते हैं, जिनसे धारा कुंडली में प्रवाहित होती है।
जब कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) के कारण कुंडली की दोनों भुजाओं पर समान परिमाण के लेकिन विपरीत दिशाओं में बल (Forces) लगते हैं।
इन बलों के प्रभाव से आर्मेचर घूमने (Rotate) लगता है।
इस प्रकार विद्युत मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक गति में बदल देती है।
✸ विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)
जब भी किसी कुंडली (Coil) और चुंबक (Magnet) के बीच आपेक्षिक गति (Relative Motion) होती है, अर्थात चुंबक को कुंडली के पास या दूर ले जाया जाता है, तब कुंडली में विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
इस प्रभाव को विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) कहा जाता है।
➤ इस धारा को प्रेरित धारा (Induced Current) कहा जाता है।
यह सिद्धांत विद्युत जनित्र (Electric Generator) और ट्रांसफार्मर (Transformer) दोनों के कार्य का आधार है।
✸ फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम (Fleming’s Right-Hand Rule)
यदि हम अपने दाएँ हाथ की तीन उंगलियाँ — अंगूठा (Thumb), तर्जनी (Forefinger) और मध्यमा (Middle Finger) — को परस्पर समकोण (Mutually Perpendicular) में फैलाएँ,
- तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाए,
- अंगूठा गति या गति की दिशा को दर्शाए,
तो मध्यमा उस प्रेरित धारा (Induced Current) की दिशा बताती है।

यह नियम यह बताने में मदद करता है कि कुंडली या चालक में धारा किस दिशा में उत्पन्न होगी।
✸ विद्युत जनित्र (Electric Generator)
विद्युत जनित्र (Electric Generator) वह यंत्र है जो यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) को विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) में परिवर्तित करता है।
इसका उपयोग बिजली उत्पादन संयंत्रों में किया जाता है।
विद्युत जनित्र में एक कुंडली होती है जो चुंबकीय क्षेत्र में घूमती है।
कुंडली के दोनों सिरों से जुड़े होते हैं दो ताँबे के विभक्त वलय (Split Rings) C₁ और C₂, जिन्हें कार्बन ब्रश (B₁ और B₂) स्पर्श करते हैं।
जब कुंडली घूमती है, तो कुंडली और चुंबकीय क्षेत्र के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित धारा (Induced Current) उत्पन्न होती है।
➤ विभक्त वलयों और कुंडली के घूर्णन के कारण धारा की दिशा हर आधे घूर्णन पर बदलती है।
यदि धारा की दिशा को समान (Same) बनाए रखा जाए, तो उसे दिष्ट धारा (Direct Current – D.C.) कहा जाता है, और ऐसे जनित्र को दिष्ट धारा जनित्र (Dynamo) कहा जाता है।
➤ यदि विभक्त वलयों के स्थान पर सर्पी वलय (Slip Rings) का उपयोग किया जाए, तो प्रत्येक अर्ध घूर्णन के बाद धारा की दिशा बदल जाती है।
इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current – A.C.) कहा जाता है, और ऐसे जनित्र को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (A.C. Generator) कहा जाता है।
इस प्रकार जनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने का एक प्रभावी साधन है।
✸ घरों में प्रयुक्त विद्युत (Electricity Used in Homes)
हमारे घरों में जो विद्युत आपूर्ति (Electric Supply) की जाती है, वह 220 वोल्ट (V) की प्रत्यावर्ती वोल्टता (Alternating Voltage) होती है।
इसकी ध्रुवता (Polarity) प्रत्येक सेकंड में 100 बार बदलती है, अर्थात इसकी आवृत्ति (Frequency) 50 हर्ट्ज (Hz) होती है।
इस आपूर्ति को मेनलाइन पावर (Mainline Power) कहा जाता है, और जिन तारों द्वारा यह आपूर्ति घरों तक पहुँचती है, उन्हें मेंस (Mains) कहा जाता है।
➤ मेंस के प्रकार (Types of Mains):
(i) घरेलू लाइन (Domestic Line):
इससे लगभग 5 एम्पियर (A) की धारा प्रवाहित होती है। इसका उपयोग बल्ब, पंखा, ट्यूब लाइट आदि के लिए किया जाता है।
(ii) पॉवर लाइन (Power Line):
इससे लगभग 15 एम्पियर (A) की धारा प्रवाहित होती है। इसका उपयोग भारी उपकरणों जैसे हीटर, फ्रिज, मिक्सर आदि के लिए होता है।
✸ घरेलू वायरिंग की संरचना (Domestic Wiring System)
पावर हाउस (Power House) से विद्युत को ट्रांसफॉर्मर (Transformer) की सहायता से वोल्टता कम की जाती है और इसे बिजली के खंभों (Electric Poles) पर लगे ताँबे के दो तारों द्वारा घरों तक पहुँचाया जाता है।
➤ इनमें से एक तार विद्युन्मय तार (Live Wire) कहलाता है, जिसे लाल रंग के इन्सुलेटर (Red Insulated Wire) से ढँका जाता है।
➤ दूसरा तार उदासीन तार (Neutral Wire) कहलाता है, जिसे सामान्यतः काले या नीले रंग के इन्सुलेटर से ढँका जाता है।
➤ घरों में एक तीसरा तार भी होता है जिसे भू-तार (Earth Wire) कहा जाता है, जो हरे रंग (Green) के इन्सुलेटर से ढँका होता है और सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।
➤ घरों में बनाए जाने वाले परिपथ (Circuits in Homes):
(i) 5A परिपथ:
कम शक्ति वाले उपकरणों के लिए जैसे — बल्ब, पंखा, ट्यूब लाइट आदि।
(ii) 15A परिपथ:
अधिक शक्ति वाले उपकरणों के लिए जैसे — हीटर, रेफ्रिजरेटर, इस्त्री आदि।
✸ अतिभारण (Overloading)
जब विद्युत परिपथ में लगे सभी उपकरणों की कुल शक्ति (Total Power Consumption) उस तार या फ्यूज की स्वीकृत सीमा (Permitted Limit) से अधिक हो जाती है, तो उस स्थिति को अतिभारण (Overloading) कहा जाता है।
अतिभारण से तारों में अत्यधिक धारा प्रवाहित (Excess Current Flow) होती है जिससे तार गर्म (Overheat) होकर आग लग सकती है या परिपथ खराब हो सकता है।
✸ लघुपथन (Short-Circuiting)
जब परिपथ में लगे दो तारों की विद्युतरोधी परत (Insulation Layer) किसी कारणवश खराब या क्षतिग्रस्त हो जाती है और दोनों तार आपस में संपर्क (Contact) में आ जाते हैं, तब परिपथ का प्रतिरोध (Resistance) लगभग शून्य हो जाता है।
इससे बहुत अधिक धारा प्रवाहित होती है, जिसे लघुपथन (Short Circuit) कहा जाता है।
यह स्थिति अत्यंत खतरनाक होती है क्योंकि इससे चिंगारी (Sparks) या आग (Fire) लग सकती है।
✸ फ्यूज (Fuse)
फ्यूज (Fuse) एक सुरक्षा उपकरण है जो परिपथ को अतिभारण या लघुपथन से बचाता है।
यह एक ऐसे पदार्थ का छोटा तार (Thin Wire) होता है जिसकी
- प्रतिरोधकता (Resistance) अधिक होती है, और
- गलनांक (Melting Point) कम होता है।
जब परिपथ में धारा का प्रवाह सामान्य सीमा से अधिक बढ़ जाता है, तो धारा द्वारा उत्पन्न ऊष्मा (Heat) से फ्यूज का तार पिघल (Melt) जाता है, जिससे परिपथ टूट जाता है (Circuit Breaks) और उपकरण सुरक्षित रहते हैं।
➤ फ्यूज सदैव विद्युन्मय तार (Live Wire) के साथ श्रृंखलाबद्ध (In Series) जोड़ा जाता है ताकि किसी भी खतरे की स्थिति में पूरा परिपथ तुरंत टूट जाए।
✸ विद्युत उपयोग से संबंधित सावधानियाँ (Precautions while Using Electricity)
- स्विच, प्लग, सॉकेट और तारों के सभी संबंध (Connections) अच्छी तरह से फिट और मजबूत होने चाहिए।
- स्विच, तार और उपकरण सदैव अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) के होने चाहिए।
- परिपथ में लगा फ्यूज उपयुक्त क्षमता (Correct Rating) का होना चाहिए।
- अधिक शक्ति (High Power) वाले उपकरण — जैसे हीटर, रेफ्रिजरेटर, इस्त्री आदि — को भू-तार (Earth Wire) से अवश्य जोड़ा जाना चाहिए।
- परिपथ को आग या दुर्घटना से बचाने के लिए एम.सी.बी (MCB – Miniature Circuit Breaker) का उपयोग करना चाहिए।
- यदि कोई व्यक्ति गलती से विद्युन्मय तार के संपर्क में आ जाए, तो उसे किसी विद्युतरोधी वस्तु (Insulating Material) जैसे लकड़ी या सूखे कपड़े की सहायता से छुड़ाना चाहिए।
- किसी भी मरम्मत कार्य के दौरान रबर के दस्ताने और जूते (Rubber Gloves & Shoes) अवश्य पहनें।
निष्कर्ष (Conclusion):
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