Class 10th Chemistry Chapter 5 Notes in Hindi – तत्वों का आवर्त वर्गीकरण (Periodic Classification of Elements) के इस पोस्ट में हम आपको NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित, सरल, स्पष्ट और परीक्षा-उपयोगी संपूर्ण नोट्स प्रदान कर रहे हैं।
यह नोट्स विशेष रूप से CBSE, Bihar Board, UP Board तथा अन्य राज्य बोर्डों के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए हैं, ताकि वे इस अध्याय के प्रत्येक सिद्धांत को सरल भाषा में समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त कर सकें।
इस अध्याय में हमने तत्वों के वर्गीकरण के ऐतिहासिक विकास जैसे – डॉबेराइनर का त्रिक नियम, न्यूलैंड्स का अष्टक नियम, मेंडलीफ की आवर्त सारणी, तथा आधुनिक आवर्त सारणी को विस्तारपूर्वक और उदाहरणों सहित समझाया है।
साथ ही, यहाँ आप सीखेंगे – तत्वों की आवर्तता (Periodicity of Elements), संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence Electrons), परमाणु आकार (Atomic Size), धात्विक व अधात्विक गुण (Metallic and Non-Metallic Properties), विद्युत धनात्मकता एवं ऋणात्मकता (Electropositivity and Electronegativity) तथा संयोजकता (Valency) जैसे महत्वपूर्ण विषयों को भी।
हर विषय को सरल व्याख्या, सारणियों, उदाहरणों और मुख्य बिंदुओं (Key Points) के माध्यम से इस प्रकार समझाया गया है कि विद्यार्थी इसे आसानी से याद रख सकें और परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
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Class 10th Chemistry Chapter 5 Notes in Hindi

तत्वों का आवर्त वर्गीकरण (Periodic Classification of Elements)
समान रासायनिक एवं भौतिक गुणों वाले तत्वों को एक ही वर्ग या समूह में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को तत्वों का आवर्त वर्गीकरण कहा जाता है। इसका उद्देश्य तत्वों के गुणों को समझना तथा उनके बीच संबंध स्थापित करना है।
डॉबेराइनर का त्रिक नियम (Dobereiner’s Triads Rule)
सन 1817 ई. में जर्मन वैज्ञानिक जोहान डॉबेराइनर (Johann Dobereiner) ने तत्वों के वर्गीकरण का एक प्रारंभिक प्रयास किया। उन्होंने पाया कि यदि समान गुणों वाले तीन तत्वों (त्रिक) को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में सजाया जाए, तो बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान पहले और अंतिम तत्वों के औसत के लगभग बराबर होता है।
उदाहरण:
| तत्व | परमाणु द्रव्यमान | औसत गणना |
| लिथियम (Li) | 7 | |
| सोडियम (Na) | 23 | (7 + 39) ÷ 2 = 23 |
| पोटैशियम (K) | 39 |
यह त्रिक तत्वों के गुणधर्मों में समानता दर्शाता है।
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की सीमाएँ:
- यह वर्गीकरण केवल कुछ तत्वों (तीन त्रिकों) तक ही सीमित था।
- सभी ज्ञात तत्वों को इस नियम के अंतर्गत नहीं लाया जा सका।
- उस समय ज्ञात अधिकांश तत्वों के गुण इस नियम से मेल नहीं खाते थे।
- यह वर्गीकरण वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्ण नहीं था, लेकिन आगे के आवर्त वर्गीकरण की नींव रखी।
न्यूलैंड्स का अष्टक नियम (Newlands’ Law of Octaves)
सन 1866 ई. में इंग्लैंड के वैज्ञानिक जॉन न्यू लैंड्स (John Newlands) ने तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में सजाया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवाँ तत्व पहले तत्व के समान गुण प्रदर्शित करता है, ठीक वैसे ही जैसे संगीत में आठवाँ स्वर पहले स्वर के समान होता है। इस नियम को अष्टक नियम (Law of Octaves) कहा गया।
उन्होंने वर्गीकरण की शुरुआत सबसे हल्के तत्व हाइड्रोजन (H) से की और 56वें तत्व थोरियम (Th) तक यह क्रम बनाया।
न्यूलैंड्स के अष्टक नियम की सीमाएँ:
- यह नियम केवल कैल्शियम (Ca) तक ही लागू हुआ।
- यह केवल हल्के तत्वों के लिए उपयुक्त था।
- भारी तत्वों (जैसे आयरन, कॉपर, जिंक आदि) पर यह नियम लागू नहीं हो सका।
- उन्होंने कुछ तत्वों को एक ही स्थान पर रखा, जैसे – कोबाल्ट (Co) और निकेल (Ni)।
- न्यू लैंड्स ने यह भी माना कि प्रकृति में केवल 56 तत्व ही पाए जाते हैं, जबकि बाद में और तत्व खोजे गए।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी (Mendeleev’s Periodic Table)
प्रस्तावना:
रूसी वैज्ञानिक दिमित्री इवानोविच मेंडलीफ (Dmitri Ivanovich Mendeleev) ने सन 1869 ई. में तत्वों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया। उनकी आवर्त सारणी को 1872 ई. में जर्मन पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
मेंडलीफ ने कुल 63 तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में सजाया।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी का मापदंड (Basis of Mendeleev’s Classification)
- तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में रखा गया।
- समान रासायनिक गुणों वाले तत्वों को एक समूह (Group) में रखा गया।
- तत्वों के हाइड्राइड एवं ऑक्साइड के सूत्रों को वर्गीकरण का आधार माना गया।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी की विशेषताएँ (Features of Mendeleev’s Table)
- तत्वों का सामान्य अध्ययन करना आसान हो गया।
- इससे नए तत्वों की खोज की भविष्यवाणी संभव हुई।
- तत्वों के यौगिकों की पहचान में सुविधा हुई।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के कार्य में सहायता मिली।
मेंडलीफ की सारणी में 6 क्षैतिज पंक्तियाँ (आवर्त) और 8 ऊर्ध्व स्तंभ (समूह) थे।
मेंडलीफ की सारणी की सीमाएँ:
- हाइड्रोजन का सही स्थान निश्चित नहीं हो सका।
- समस्थानिकों (Isotopes) का स्थान स्पष्ट नहीं था।
- कुछ तत्वों का परमाणु द्रव्यमान और गुण मेल नहीं खाते थे (जैसे टेल्यूरियम और आयोडीन)।
- अक्रिय गैसों की खोज उस समय तक नहीं हुई थी, इसलिए उनका कोई स्थान नहीं था।
आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table)
आधुनिक आवर्त सारणी मोसले (Henry Moseley) द्वारा दी गई थी। उन्होंने 1913 में बताया कि तत्वों के गुणधर्म उनके परमाणु संख्या (Atomic Number) पर निर्भर करते हैं, न कि परमाणु द्रव्यमान पर।
संरचना:
- इसमें 7 क्षैतिज पंक्तियाँ (Periods) और 18 ऊर्ध्व स्तंभ (Groups) हैं।
- अक्रिय गैसों को 18वें समूह में स्थान दिया गया है।
- इसमें उपसमूह A और B को अलग-अलग समूहों के रूप में रखा गया है।
आधुनिक सारणी की विशेषताएँ:
- यह अधिक वैज्ञानिक एवं सटीक है।
- मेंडलीफ की सभी प्रमुख त्रुटियाँ दूर हो गईं।
- तत्वों के गुणधर्मों का क्रमबद्ध अध्ययन करना आसान हो गया।
- नए खोजे गए तत्वों को उचित स्थान दिया जा सकता है।
मेंडलीफ की और आधुनिक आवर्त सारणी में अंतर
| बिंदु | मेंडलीफ की आवर्त सारणी | आधुनिक आवर्त सारणी |
| आधार | परमाणु द्रव्यमान पर आधारित | परमाणु संख्या पर आधारित |
| समूह विभाजन | उपसमूह A और B एक साथ | उपसमूह A और B अलग-अलग |
| पंक्तियाँ और स्तंभ | 6 पंक्तियाँ, 8 स्तंभ | 7 पंक्तियाँ, 18 स्तंभ |
| अक्रिय गैसें | स्थान नहीं दिया गया | 18वें समूह में शामिल |
| त्रुटियाँ | कई दोष मौजूद | अधिकांश दोष दूर |
| रूप | छोटा और अपूर्ण रूप | बड़ा और वैज्ञानिक रूप |
यह संपूर्ण वर्गीकरण बताता है कि कैसे प्रारंभिक प्रयासों से लेकर आधुनिक आवर्त सारणी तक तत्वों की समझ और संगठन में क्रमिक विकास हुआ।
तत्वों की आवर्तता (Periodic Property of Elements)
आवर्त सारणी में जब हम तत्वों को उनके परमाणु संख्या के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करते हैं, तो एक निश्चित अंतराल के बाद तत्वों के समान रासायनिक गुण दोहराए जाते हैं। इस गुण की पुनरावृत्ति को ही तत्वों की आवर्तता (Periodicity of Elements) कहा जाता है।
सरल शब्दों में — समान गुणों वाले तत्व निश्चित अंतराल के बाद पुनः दिखाई देते हैं, यही तत्वों की आवर्तता कहलाती है।
संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence Electrons)
आवर्त सारणी में किसी भी वर्ग (Group) में ऊपर से नीचे जाने पर तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या (Valence Electrons) में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसका अर्थ यह है कि एक ही समूह के सभी तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।
जबकि किसी आवर्त (Period) में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या में क्रमशः वृद्धि होती है। यह संख्या 1 से 8 तक होती है।
उदाहरण:
पहले आवर्त में — हाइड्रोजन (H) के 1, हीलियम (He) के 2 संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं।
दूसरे आवर्त में — लिथियम (Li) से नीयॉन (Ne) तक संयोजी इलेक्ट्रॉन क्रमशः 1 से 8 तक बढ़ते हैं।
परमाणु आकार (Atomic Size or Atomic Radius)
किसी भी समूह (Group) में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु का आकार बढ़ता है, क्योंकि प्रत्येक क्रमागत तत्व में एक नया इलेक्ट्रॉन शेल (Shell) जुड़ जाता है।
जबकि किसी आवर्त (Period) में बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु आकार घटता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन जोड़ने के साथ-साथ नाभिक का आकर्षण बल बढ़ता है जिससे इलेक्ट्रॉन नाभिक की ओर खिंच जाते हैं।
धात्विक गुण (Metallic Character)
किसी भी आवर्त (Period) में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्वों के धात्विक गुण (Metallic Character) में धीरे-धीरे कमी आती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन खोने की प्रवृत्ति घटती जाती है।
जबकि किसी वर्ग (Group) में ऊपर से नीचे जाने पर धात्विक गुणों में वृद्धि होती है, क्योंकि परमाणु आकार बढ़ने से बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होते हैं और आसानी से खो सकते हैं।
विद्युत धनात्मकता (Electropositivity)
विद्युत धनात्मकता का अर्थ है किसी तत्व की इलेक्ट्रॉन खोने की प्रवृत्ति। आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्वों की विद्युत धनात्मकता कम होती जाती है, क्योंकि नाभिक का आकर्षण बल बढ़ता है। वहीं समूह में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत धनात्मकता बढ़ती है, क्योंकि बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होते हैं।
अधात्विक गुण (Non-Metallic Character)
किसी आवर्त (Period) में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्वों के अधात्विक गुण (Non-Metallic Character) में क्रमशः वृद्धि होती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
वहीं किसी वर्ग (Group) में ऊपर से नीचे जाने पर अधात्विक गुणों में कमी होती है, क्योंकि परमाणु आकार बढ़ने से इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की क्षमता घट जाती है।
विद्युत ऋणात्मकता (Electronegativity)
विद्युत ऋणात्मकता का अर्थ है किसी तत्व की इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने की क्षमता।
आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर नाभिक का आकर्षण बल बढ़ने के कारण विद्युत ऋणात्मकता बढ़ती है।
वहीं समूह में ऊपर से नीचे जाने पर नाभिक और बाहरी इलेक्ट्रॉनों की दूरी बढ़ने से विद्युत ऋणात्मकता घटती है।
संयोजकता (Valency)
किसी भी समूह (Group) में ऊपर से नीचे जाने पर तत्वों की संयोजकता (Valency) में कोई परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि उनके संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान रहती है।
जबकि किसी आवर्त (Period) में बाएँ से दाएँ जाने पर तत्वों की संयोजकता पहले बढ़ती है, फिर अधिकतम मान प्राप्त करने के बाद घटते हुए शून्य (0) हो जाती है।
उदाहरण:
दूसरे आवर्त में —
Li (1), Be (2), B (3), C (4), N (3), O (2), F (1), Ne (0)
निष्कर्ष (Conclusion):
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